श्री परली वैजनाथ मंदिर या परली वैद्यनाथ मंदिर महाराष्ट्र राज्य के बीड जिले के परली में स्थित है और भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल है। वैजनाथ मंदिर आयुर्वेद के देवता धनवंतरी और अमृतेश्वरी के रूप में भी लोकप्रिय है।
भारत में तीन वैद्यनाथ हैं। ये देवघर (झारखंड), परली महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश में है। प्राचीन काल से चली आ रही परंपराओं के अनुसार भक्त तीनों ही जगह को ज्योतिर्लिंग मानते हैं। संत समाज और शंकराचार्य आदि में इस बात को लेकर अक्सर मतभेद होते रहते हैं। कुछ साल पहले उज्जैन में भी इस बात पर विवाद हुआ था कि किसे 12वां ज्योतिर्लिंग कहा जाए। इस पर सब अपने अपने तर्क देते हैं। हालांकि भक्त तीनों ही जगह को श्रद्धानुसार ज्योतिर्लिंग मानते हैं।
शिवपुराण में मिलती है पुष्टि :
महाराष्ट्र के ‘परली वैजनाथ (वैद्यनाथ)’ को ज्योतिर्लिंग मानने की पुष्टि शिवपुराण में भी मिलती है। करवीर पीठ के शंकराचार्य विद्यानृसिंह भारती ने भी इसी ‘पूर्वोत्तर’ स्थान बीड जिले के परली के अधिकृत होने की पुष्टि की है। इसी गांव के पंडित विजय पाठक ने इसकी पुष्टि करते हुए शिवपुराण में दिया गया श्लोक सुनाया था।
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसंतम गिरिजासमेतम.
सुरासुराराधितपाद्पदमम श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि.
(अध्याय २८, द्वादश्ज्योतिर्लिन्ग्स्तोत्रम, कोटिरुद्रसंहिता, शिवमहापुराण)
अर्थात पूर्वोत्तर में परलीगांव में गिरीजा के साथ स्थित इस सदाशिव को मेरा सदा नमस्कार है। अक्षांश-रेखांश को देखें तो परली बीड जिले के पूर्वोत्तर मे आता है।
परली वैजनाथ मंदिर / वैद्यनाथ मंदिर का वास्तुकला :
भारत के नक़्शे पर कन्याकुमारी से उज्जैन के बीच अगर एक मध्य रेखा खिंची जाय तो उस रेखा पर आपको परली गाँव दिखाई देगा, यह गाँव मेरु पर्वत अथवा नागनारायण पहाड़ की एक ढलान पर बसा है. ब्रम्हा, वेणु और सरस्वती नदियों के आसपास बसा परली एक प्राचीन गाँव है ,गाँव के आसपास का क्षेत्र पुराण कालीन घटनाओं का साक्षी है
अतः इस गाँव को विशेष महत्व प्राप्त हुआ है.ऐसा कहा जाता है कि सावित्री और सत्यवान यहीं रहते थे और यमराज से अपने प्रिय पति के प्राण वापस लेने की सावित्री की प्रसिद्ध घटना यहीं नारायण पर्वत के आसपास घटी थी। इस दावे से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि परली कभी मद्र साम्राज्य का हिस्सा था , जिसके राजा अश्वपति, सावित्री के पिता थे।
परली वैजनाथ मंदिर एक छोटी पहाड़ी पर पत्थरों का उपयोग कर बनाया गया है। मंदिर जमीनी स्तर से लगभग 75-80 फीट की ऊंचाई पर है। मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व से है और वहां मौजूद शानदार दरवाजा पीतल से मढ़ा हुआ है। चार मजबूत दीवारों से घिरे, मंदिर में गलियारे और एक आंगन हैं। मंदिर के मुख्य द्वार को "महाद्वार" भी कहा जाता है, जिसमें पास में एक प्राचीन (गवाक्ष) यानि खिड़की है। मंदिर में प्रवेश करने के लिए एक विस्तृत सीढ़ी है।
परली वैजनाथ मंदिर के गर्भगृह में दो प्रवेश द्वार हैं: उत्तर और दक्षिण। परली वैजनाथ के बाहर एक मीनार में विशेष ग्वाक्ष (खिड़कियाँ) हैं। जब सूर्य की किरणें खिड़कियों से होकर गुजरती हैं तो सीधे शिव लिंग पर पड़ती हैं। इस समय, पुजारी सूर्य देव की विशेष प्रार्थना और पूजा करते हैं ।
मंदिर परिसर के भीतर एक बड़ा सागौन की लकड़ी का हॉल और परिक्रमा के लिए एक बड़ा दालान है। दो तालाब, दोनों का धार्मिक महत्व है, मंदिर की भव्यता को बढ़ाते हैं। सभामंडप में गर्भगृह के ठीक सामने लेकिन थोड़ी दुरी पर एक ही जगह पर एक साथ तीन अलग अलग आकार के पीली आभा लिए पीतल के नंदी विद्यमान हैं, जहाँ से ज्योतिर्लिंग के स्पष्ट दर्शन होते हैं । गर्भगृह के प्रवेश द्वार के समीप ही माता पार्वती का मंदिर भी है।
परली वैजनाथ मंदिर / वैद्यनाथ मंदिर का इतिहास :
साल 1700 में शिव भक्त अहिल्यादेवी होलकर ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इस मंदिर से दो बेहद लोकप्रिय किवदंतियां जुड़ी हुई हैं। एक किंवदंती अमृत के बारे में बात करती है और दूसरी राक्षस राजा रावण और शिव को पाने की उसकी खोज के बारे में बात करती है ।अमृत की कथा :
समुद्र मंथन दूध के सागर का मंथन था और इसमें विष और अमृत सहित 14 रत्न निकले थे। जैसे ही राक्षस अमृत झपटने वाले थे,तो भगवान श्रीहरि विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया धन्वंतरि और अमृत दोनों को पकड़ लिया और उन्हें एक शिव लिंग के अंदर छिपा दिया ।
क्रोधित राक्षसों ने लिंग को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन जब उन्होंने उसे छुआ तो उसमें से आग की लपटें निकलने लगीं। इससे राक्षस डर गये और वे वहां से भाग गये। चूँकि यह वह स्थान है जहाँ देवताओं ने सफलतापूर्वक अमृत प्राप्त किया था, यह गाँव वैजयंती के नाम से लोकप्रिय हो गया और इसलिए यह मंदिर परली वैजनाथ के रूप में लोकप्रिय हो गया।
दूसरी किंवदंती के अनुसार :
पुराणों में कहा गया है कि लंका का राजा रावण भगवान शिव का परम भक्त था। एक बार राक्षस राजा रावण कैलास पर्वत पर गया और भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। सर्दी, गर्मी, बारिश को सहते हुए भी जब भगवान शिव उसके सामने नहीं आए, तो उसने शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए अपना सिर काटना शुरू कर दिया। तब रावण द्वारा अपना दसवां सिर चढ़ाने का प्रयास करने पर भगवान प्रकट हुए।
उन्होंने रावण के सभी सिर लौटा दिये और उसे वरदान दिये। रावण ने वरदान स्वरूप भगवान शिव को लंका ले जाने की इच्छा प्रकट की। उन्होंने कहा, ''मैं आपको लंका ले जाना चाहता हूं.'' शंकर, जो अपने भक्तों के प्रति बहुत नरम दिल हैं, रावण के साथ लंका जाने के लिए सहमत हो गए। उन्होंने रावण से कहा, "तुम्हें मेरे लिंग को देखभाल और भक्ति के साथ ले जाना होगा, लेकिन सावधान रहना कि जब तक तुम अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच जाते, तब तक इसे पृथ्वी पर मत रखना, अन्यथा, यह वहीं रह जाएगा जहां भी तुम इसे रखोगे" शिव ने चेतावनी दी।
रावण ने शिवलिंग लेकर घर की ओर यात्रा शुरू की। रास्ते में वह पेशाब करके खुद को राहत देना चाहता था। उन्होंने खुद को राहत देते हुए एक चरवाहे लड़के को लिंग को पकड़ने के लिए कहा। ऐसा माना जाता है कि रावण को धोखा देने के लिए भगवान गणेश चरवाहे बने थे जिसका नाम बैजू था। चरवाहा लिंग का भार सहन करने में सक्षम नहीं था और जब वह उसे संभाल नहीं सका, तो उसने उसे पृथ्वी पर रख दिया। और वहां रखा गया शिव लिंग भगवान शिव के पहले से ही स्थापित रूप में बना रहा और वैजनाथ के नाम से जाना जाने लगा।
परली वैजनाथ मंदिर ज्योतिर्लिंग का महत्व :
माना जाता है कि परली के शिवलिंग में अमृत और औषधियां (धन्वंतरि) हैं। परली औषधीय पौधों वाले पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ है। शिवलिंग और उसके आसपास धन्वंतरि की उपस्थिति के कारण परली ज्योतिर्लिंग को वैजनाथ के नाम से जाना जाता है।श्रावण मास हिंदू कैलेंडर के पांचवें महीने में आता है, जुलाई के अंत से शुरू होकर अगस्त के तीसरे सप्ताह तक समाप्त होता है।
श्रावण मास के दौरान परली के पूरे गांव में रुद्र मंत्र के जाप की गूंज होती है।लोगों का मानना है कि चूंकि भगवान विष्णु ने लिंग में अमृत और धन्वंतरि दोनों छिपाए थे, इसलिए जो कोई भी लिंग को छूता है उसे अमृत की शक्ति प्राप्त हो सकती है। परली हरि हर का मिलन स्थल भी है । यहां हरि (विष्णु) और हर (शिव) दोनों के त्योहार मनाये जाते हैं। भक्तों को पूजा के दौरान परली वैजनाथ लिंग को छूने की अनुमति है और इससे उपचार और विभिन्न स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने में मदद मिलती है
परली वैजनाथ मंदिर कैसे पहुंचें :
निकटतम रेलवे स्टेशन परली है और परली वैजनाथ से 2 किमी दूर है। सिकंदराबाद, काकीनाडा, मनमाड, विशाखापत्तनम और बैंगलोर से सीधी ट्रेनें संचालित होती हैं। महाराष्ट्र के बड़े शहरों जैसे मुंबई, पुणे, औरंगाबाद, नागपुर, नांदेड, अकोला आदि से सीधे सड़क मार्ग से जुड़ा है तथा यहाँ पहुँचने के लिए महाराष्ट्र परिवहन निगम की बसें आसानी से उपलब्ध हैं।
परली में बस स्टैंड तथा रेलवे स्टेशन एक दुसरे के बहुत करीब हैं। स्टेशन से मंदिर जाने के लिए 30 रु. देकर ऑटो रिक्शा लिया जा सकता है. शहर के भीतर परिवहन का सबसे आम साधन ऑटो-रिक्शा है। ओला, उबर आदि कैब सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं।
मंदिर समय :
परली वैजनाथ मंदिर सुबह 5 बजे प्रातः आरती के साथ खुलता है, तथा दोपहर 3 बजे तक खुला रहता है, तथा इस समय के दौरान भक्त गण पूजा अभिषेक कर सकते हैं. शाम 5 बजे भस्म पूजा होती है, तथा रात 9 : 45 बजे शयन आरती होती है. रात दस बजे मंदिर बंद हो जाता है ।
ठहरने की व्यवस्था:
परली में एक बड़ी अच्छी बात यह है की परली वैद्यनाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित यात्री निवास (धर्मशाला) मंदिर के एकदम करीब स्थित है, यानी मंदिर की सीढियों से एकदम लगा हुआ है ।यहाँ पर यात्रियों के ठहरने के लिए उत्तम व्यवस्था है, मदिर से बिलकुल सटे हुए दो यात्री निवास हैं जो की श्री बैद्यनाथ मंदिर ट्रस्ट के द्वारा संचालित किये जाते हैं 200 रु. से 300 के शुल्क पर उपलब्ध हैं. इन यात्री निवासों में सारी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध हैं ।