हिंदू धर्म में गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है, पार्वती जी की नाराजगी दूर करने के लिए शिव जी ने गणेश जी के हाथी का मस्तक लगाकर जीवनदान दिया। तब देवताओं ने गणेश जी को तमाम शक्तियां प्रदान की और प्रथम पूज्य बनाया। यह घटना भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुई थी इसलिए यह तिथि पुण्य पर्व 'गणेश चतुर्थी' के रूप में मनाई जाती है।
यह हिंदू कैलेंडर के छठे महीने, भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) महीने के चौथे दिन (चतुर्थी) से शुरू होता है। समृद्धि और ज्ञान के देवता, हाथी के सिर वाले भगवान गणेश के जन्म का 10 दिवसीय त्योहार है। इस तिथि से 10 दिनों का गणेशोत्सव प्रारंभ हो जाता है, जो अनंत चतुर्दशी यानि भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी तिथि को गणेश विसर्जन तक चलता है. गणेश चतुर्थी में लोग गणपति बप्पा को अपने घर पर लाते हैं, उनकी स्थापना करके पूजा-अर्चना करते हैं ।
गणेशोत्सव की शुरुआत
गणेशोत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र की राजधानी पुणे से हुई थी। गणेश चतुर्थी का इतिहास मराठा साम्राज्य के सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ा है। मान्यता है कि भारत में मुगल शासन के दौरान अपनी सनातन संस्कृति को बचाने हेतु छत्रपति शिवाजी ने अपनी माता जीजाबाई के साथ मिलकर गणेश चतुर्थी यानी गणेश महोत्सव की शुरुआत की थी। \
मराठा साम्राज्य के बाकी पेशवा भी गणेश महोत्सव मनाने लगे। गणेश चतुर्थी के दौरान मराठा पेशवा ब्राह्मणों को भोजन कराते थे और साथ ही दान पुण्य भी करते थे। पेशवाओं के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में हिंदुओं के सभी पर्वों पर रोक लगा दी।
फिर बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी के महोत्सव को दोबारा मनाने की शुरूआत की। आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के उद्देश्य से बाल गंगाधर तिलक ने मुंबई में गणेश उत्सव की शुरुआत की।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया। आगे चलकर उनका यह प्रयास एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में इस गणेशोत्सव ने लोगों को एक जुट करने में अहम भूमिका निभाई।
पौराणिक कथा
पुराणों में गणेश उत्सव को लेकर कई कथाएं हैं। मान्यता है कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश जी का जन्म हुआ था। इस दिन को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। 10 दिनों तक गणेश उत्सव मनाने का यह कारण है कि वेद व्यास जी ने भगवान गणेश से महाभारत ग्रंथ लिखने की प्रार्थना की थी, गणेश जी ने कहा कि मैं जब लिखना प्रारंभ करूंगा तो कलम को रोकूंगा नहीं, यदि कलम रुक गई तो लिखना बंद कर दूंगा।
तब व्यासजी ने कहा प्रभु आप विद्वानों में अग्रणी हैं और मैं एक साधारण ऋषि किसी श्लोक में त्रुटि हो सकती है, अतः आप बिना समझे और त्रुटि हो तो निवारण करते हुए श्लोक को लिपिबद्ध करें। चतुर्थी के दिन ही व्यासजी ने श्लोक बोलना और गणेशजी ने महाभारत को लिपिबद्ध करना प्रारंभ किया था। उसके 10 दिन बाद अनंत चतुर्दशी को लेखन का कार्य समाप्त हुआ था। इन दस दिनों में गणेशजी एक ही आसन पर बैठकर महाभारत को लिपिबद्ध करते रहे।
इस कारण दस दिनों में उनका शरीर जड़वत हो गया और शरीर पर धूल, मिट्टी की परत जमा हो गई, तब दस दिन बाद गणेश जी ने सरस्वती नदी में स्नान करके अपने शरीर पर जमी धूल और मिट्टी को साफ किया। इसलिए गणेश चतुर्थी पर गणेशजी को स्थापित किया जाता है और 10 दिन मन, वचन कर्म और भक्ति भाव से उनकी उपासना करके अनंत चतुर्दशी को विसर्जित कर दिया जाता है।
मान्यता ये भी है कि गणेश उत्सव के 10 दिनों तक भगवान गणेश पृथ्वी पर ही रहते हैं और अपने भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं। बप्पा के आगमन से जीवन में सुख और समृद्धि आती है, विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं।