अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रास पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व है। इस पावन तिथि को सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्रदान करने वाला माना गया है।
शरद पूर्णिमा |
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को जहां चंद्र देवता अमृत वर्षा करते हैं तो वहीं मां लक्ष्मी अपनी विशेष कृपा बरसाती हैं। शरद पूर्णिमा के पावन पर्व से उत्तर भारत में सर्दियों की शुरुआत मानी जाती है कहा जाता है कि इस रात चंद्रमा की किरणें औषधीय गुणों से परिपूर्ण होती है, मान्यता है कि जिस पर ये किरणें पड़ जाएं, उसके गंभोर रोग समाप्त हो जाते हैं।भारत के कई राज्यों में शरद पूर्णिमा को फसल कटाई के उत्सव के रूप में मनाते हैं तथा इस दिवस से वर्षा काल की समाप्ति तथा शीत काल की शुरुआत होती है।
शरद पूर्णिमा की कथा
हर महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि पर व्रत करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक साहूकार की दो बेटियां महीने में आने वाली हर पूर्णिमा को व्रत किया करती थी।
इन दोनों बेटियों में बड़ी बेटी पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि-विधान से किया करती थी। जबकि छोटी बेटी व्रत तो करती थी लेकिन नियमों में उस तरह से पालन नहीं करती थी। नियमों को आडंबर मानकर उनकी अनदेखी करती थी।
जैसी ही दोनों बेटी बड़ी हुई साहूकार ने दोनों दोनों बेटियों का विवाह कर दिया। बड़ी बेटी के घर समय पर स्वस्थ संतान का जन्म हुआ। छोटी बेटी को भी संतान हुई लेकिन, उसकी संतान जन्म लेती ही दम तोड़ देती थी।
जब उसके साथ ऐसा दो से तीन बार हो गया तो उसने एक ब्राह्मण को बुलाकर अपनी पूरी व्यथा सुनाई साथ ही इसका उपाय बताने के लिए भी कहा। उसकी सारी बात सुनकर और कुछ प्रश्न पूछने के बाद ब्राह्मण ने उससे कहा कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इस कारण तुम्हे व्रत का पूरा फल नहीं मिल रहा है और तुम्हे अधूरे व्रत का दोष लगता है। ब्राह्मण की बात सुनकर छोटी बेटी ने पूर्णिमा व्रत पूरे विधि-विधान से करने का निर्णय लिया।
लेकिन पूर्णिमा आने से पहले ही उसने एक बेटे को जन्म दिया। जन्म लेते ही बेटे की मृत्यु हो गई। इस पर उसने अपने बेटे शव को एक पीढ़े पर रख दिया और ऊपर से एक कपड़ा इस तरह ढक दिया कि किसी को पता न चले। फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया। जैसे ही बड़ी बहन उस पीढ़े पर बैठने लगी, उसके लहंगे की किनारी बच्चे को छू गई और वह जीवित होकर तुरंत रोने लगा। इस पर बड़ी बहन पहले तो डर गई और फिर छोटी बहन पर क्रोधित होकर उसे डांटने लगी कि क्या तुम मुझ पर बच्चे की हत्या का दोष और कलंक लगाना चाहती हो! मेरे बैठने से यह बच्चा मर जाता तो?
इस पर छोटी बहन ने उत्तर दिया, यह बच्चा मरा हुआ तो पहले से ही था। दीदी, तुम्हारे तप और स्पर्श के कारण तो यह जीवित हो गया है। पूर्णिमा के दिन जो तुम व्रत और तप किया करती हो, उसके कारण तुम दिव्य तेज से परिपूर्ण और पवित्र हो गई हो। अब मैं भी तुम्हारी ही तरह व्रत और पूजन करूंगी। इसके बाद उसने पूर्णिमा व्रत विधि विधान से किया और इस व्रत के महत्व और फल का पूरे नगर में प्रचार किया। जिस प्रकार मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु ने साहूकार की बड़ी बेटी की कामना पूर्ण कर सौभाग्य प्रदान किया, वैसे ही हम पर भी कृपा करें।
कोजागरी पूर्णिमा
आश्विन मास की पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं, जिसका अर्थ होता है कि आखिर कौन जाग रहा है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात धन की देवी मां लक्ष्मी उल्लू की सवारी करते हुए देखने निकलती हैं कि आखिर कौन जागकर उनकी और श्री हरि की साधना कर रहा है। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा से व्यक्ति को जीवन से जुड़े सभी सुख प्राप्त होते हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा से उत्पन्न होने वाली रश्मियाँ (किरणें) अद्भुत स्वास्थ्प्रद तथा पुष्टिवर्धक गुणों से भरपूर होती है। साथ ही यह मान्यता भी है कि इस दिन चंद्र प्रकाश से अमृत की वर्षा होती है। श्रद्धालु इस दिन खीर बना कर इसे चन्द्रमा के सभी सकारात्मक एवं दिव्य गुणों के लिए इस मिष्ठान के बर्तन को चन्द्र प्रकाश के सीधे संपर्क में रखते हैं। इस खीर को प्रसाद के रूप में अगली सुबह वितरित किया जाता है।
माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की चांदनी में रखी खीर खाने से कई रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है। यह खीर चर्म रोगों से परेशान लोगों के लिए अमृत मानी जाती है और इसके साथ ही इस खीर को आंखों की रोशनी बढ़ाने वाला भी माना जाता है।
शरद पूर्णिमा के उत्सव को भगवान कृष्ण से भी जोड़ा गया है। इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता यह है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को प्रभु श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महा रास नामक दिव्य नृत्य किया था। इसलिए बृज क्षेत्र में, शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।बृज तथा वृन्दावन में रास पूर्णिमा को वृहद स्तर पर मनाया जाता है।
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का बहुत महत्व माना जाता है। जो व्यक्ति पूर्णमासी उपवास का संकल्प लेते हैं, वे शरद पूर्णिमा के दिन से ही उपवास प्रारंभ करते हैं।