सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते। "नवरात्रि" एक ऐसा पर्व जिसमें माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना में भक्त मगन हो जाते हैं, ऐसा माना जाता है कि इन 9 दिनों जो भक्त मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की श्रद्धा से आराधना करते हैं उन्हें सुख-समृद्धि, धन-धान्य और यश की प्राप्ति होती है और उन पर सदैव माँ का आशीर्वाद बना रहता है।
माँ दुर्गा का पहला स्वरुप शैलपुत्री के रूप में जाना जाता है। मां शैलपुत्री को करूणा धैर्य और इच्छाशक्ति की देवी माना जाता है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उन्हें शैलपुत्री कहा गया है। मां शैलपुत्री माता पार्वती का ही एक रूप हैं। मां शैलपुत्री श्वेत वस्त्र धारण कर, वृषभ की सवारी करती हैं। उनके एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में कमल है।
मां का ये रूप सरल, सरस और सौम्य है, मां अपने बच्चों से बेहद प्रेम करती हैं और जब भी कोई मुसीबत में इन्हें सच्चे मन से पुकारता है, ये हमेशा अपने भक्तों की प्रार्थना सुनती हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन इनके पूजन से ही भक्त के नौं दिन की यात्रा आरंभ होती है।
मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व
नवरात्रि की प्रथम देवी मां शैलपुत्री हैं। पूरे दिन मां शैलपुत्री का ध्यान करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से भय दूर होता है, शांति और उत्साह मिलता है।वे अपने भक्तों का यश, ज्ञान, मोक्ष, सुख, समृद्धि आदि प्रदान करती हैं। उनकी आराधना करने से इच्छाशक्ति प्रबल होती है। माता शैलपुत्री को सफेद पुष्प बेहद ही प्रिय है इसलिए माँ की पूजा के दौरान सफेद फूल का इस्तेमाल करना बेहद जरुरी माना जाता है।
मां शैलपुत्री पूजा मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।। पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
माता शैलपुत्री की कथा
अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं तब इनका नाम सती था। एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज दिया, लेकिन भगवान शिव को नहीं। देवी सती भलीभांति जानती थी कि उनके पास निमंत्रण आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो उस यज्ञ में जाने के लिए बेचैन थीं, लेकिन भगवान शिव ने मना कर दिया।
उन्होंने कहा कि यज्ञ में जाने के लिए उनके पास कोई भी निमंत्रण नहीं आया है और इसलिए वहां जाना उचित नहीं है। सती नहीं मानीं और बार बार यज्ञ में जाने का आग्रह करती रहीं। सती के ना मानने की वजह से शिव को उनकी बात माननी पड़ी और अनुमति दे दी।
सती जब अपने पिता प्रजापित दक्ष के यहां पहुंची तो देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं और सिर्फ उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। उनकी बाकी बहनें उनका उपहास उड़ा रहीं थीं और सति के पति भगवान शिव को भी तिरस्कृत कर रहीं थीं।
स्वयं दक्ष ने भी अपमान करने का मौका ना छोड़ा। ऐसा व्यवहार देख सती दुखी हो गईं। अपना और अपने पति का अपमान उनसे सहन न हुआ…और फिर अगले ही पल उन्होंने वो कदम उठाया जिसकी कल्पना स्वयं दक्ष ने भी नहीं की होगी। सती ने उसी यज्ञ की अग्नि में खुद को स्वाहा कर अपने प्राण त्याग दिए। भगवान शिव को जैसे ही इसके बारे में पता चला तो वो दुखी हो गए। दुख और गुस्से की ज्वाला में जलते हुए
भगवान शिव ने अपने गणों को भेजकर दक्ष का यज्ञ पूरी तरह से विध्वंस करा दिया, भगवान शिव महायज्ञ की ओर बढ़े और राजा दक्ष का वध किया। बाद में, भगवान विष्णु ने हस्तक्षेप किया और राजा दक्ष को वापस जीवन दान देने के लिए विनती की। शिव ने दक्ष को एक बकरी के सिर के साथ वापस जीवन दान प्रदान किया।
भगवान शिव सती की मृत्यु से बहुत ही दुखी थे और देवी सती की अधजली लाश को अपने कंधों पर ले कर अंतहीन भटक रहे थे।
भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र का उपयोग देवी सती की लाश को टुकड़े/विभाजित करने के लिए किया और उनके शरीर के कुछ हिस्से अलग-अलग स्थानों पर गिर गए। इन स्थानों को शक्ति-पीठों के रूप में जाना जाने लगा।
देवी सती के अंग के टुकड़े, वस्त्र और गहने जहाँ भी गिरे, वहां-वहां मां के शक्तिपीठ बन गए। ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हैं। देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र है। वहीं देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं।
अपने अगले जन्म में, देवी सती ने पहाड़ों के देवता हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है।
शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।।
माता शैलपुत्री का भोग
मां शैलपुत्री को गाय का घी अथवा उससे बने पदार्थों का भोग लगाया जाता है। जो भक्त नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री के चरणों में गाय का घी अर्पित करता है उसे आरोग्य जीवन प्राप्त होता है। इसके अलावा उन्हें किसी भी सफ़ेद रंग की मिठाई का भोग लगाना चाहिए।