सनातन धर्म में किसी भी मांगलिक कार्य या शुभ कार्य के दौरान भगवान को भोग लगाने की परंपरा है। भगवान को भोग लगाते समय भोग आरती करना आवश्यक है,भोग आरती इसलिए की जाती है क्योंकि इससे हम देवी-देवताओं का समर्पण करते हैं। यह हमारी भक्ति और प्रेम का अभिव्यक्ति का तरीका होता है और इसके बाद भोग को प्रसाद के रूप में भक्तों के बीच में बाँटा जाता है।
भोग आरती
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन।
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन।।
ऐसा भोग लगाओ मेरे मोहन,
सब अमृत हो जाये मेरे मोहन।
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन।।
दुर्योधन को मेवा त्यागो,
साग विदुर घर खायो मेरे मोहन।
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन…
सबरी के बेर सुदामा के तन्दुल,
रूचि रूचि भोग लगाओ मेरे मोहन।
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन…
वृदावन की कुञ्ज गली मे,
आओं रास रचाओ मेरे मोहन।
आओ भोग लगाओ प्यारे मोहन…
राधा और मीरा भी बोले,
मन मंदिर में आओ मेरे मोहन।
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन…
गिरी, छुआरा, किशमिश मेवा,
माखन मिश्री खाओ मेरे मोहन।
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन…
सत युग त्रेता द्वापर,कलयुग,
हर युग दरस दिखाओ मेरे मोहन।
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन…
जो कोई तुम्हारा भोग लगावे
सुख संपति घर आवे मेरे मोहन।
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन…
ऐसा भोग लगाओ मेरे मोहन
सब अमृत हो जाये मेरे मोहन।
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन…
जो कोई ऐसा भोग को खावे,
सो त्यारा हो जाये मेरे मोहन।
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन।
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन।।
ऐसा भोग लगाओ मेरे मोहन,
सब अमृत हो जाये मेरे मोहन।
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन।।