माँ कुष्मांडा देवी दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप है और उनकी पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। माता कुष्मांडा को ऊर्जा की देवी कहा जाता है। माँ दुर्गा के इस अवतार का नाम तीन शब्दों से मिलकर बना है- 1- ‘कु’ यानी छोटा सा, 2- ‘उष्मा’ यानी ऊर्जा और 3- ‘अंडा’ यानी एक गोला। अर्थात, माँ कुष्मांडा के नाम का पूरा मतलब है- "ऊर्जा का एक छोटा सा गोला" कहा जाता है, कि जब सृष्टि में चारों ओर अंधकार फैला था, तब माँ दुर्गा इसी स्वरूप में प्रकट हुई थीं और चारों तरफ प्रकाश उत्पन्न कर ब्रह्मांड की रचना की थी। इसी कारण, माँ कुष्मांडा को आदि स्वरूपा के नाम से भी जाना जाता है।
माता को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है, क्योंकि माता की आठ भुजाएं हैं। जिनमें कमंडल, धनुष-बाण, कमल पुष्प, शंख, चक्र, गदा और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला और अमृत कलश विराजमान है। इनका वाहन सिंह है और इनकी भक्ति से आयु, यश और आरोग्य की वृद्धि होती है।
मां कुष्मांडा ने अपनी मंद मंद मुस्कान की छटा बिखेरकर सृष्टि की रचना की थी, इसलिए माता को आदि स्वरूपा और आदिशक्ति कहा जाता है। माता की मुस्कान से पूरा ब्रह्मांड ज्योर्तिमय हो उठा। इसके बाद माता ने सूर्य, तारे, ग्रह और सभी आकाश गंगाओं का निर्माण किया। माता को पृथ्वी की जननी कहा जाता है।
मां कुष्मांडा देवी की पूजा का महत्वनवरात्र के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा देवी की पूजा की जाती है। मां कुष्मांडा देवी की पूजा करने से हर तरह के दुखों से छुटकारा मिलता है और धन संपदा की प्राप्ति होती है। मां कुष्मांडा की पूजा से बुद्धि का विकास होता है और जीवन में निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है।
जो मनुष्य सच्चे मन से और संपूर्ण विधिविधान से मां की पूजा करते हैं, उन्हें आसानी से अपने जीवन में परम पद की प्राप्ति होती है। यह भी माना जाता है कि मां की पूजा से भक्तों के समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं। मां के इस स्वरूप की पूजा से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
माता कुष्मांडा की आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
मां कुष्मांडा का भोग
मां कुष्मांडा को मालपुए बहुत प्रिय हैं इसीलिए नवरात्रि के चौथे दिन उन्हें मालपुए का भोग लगाया जाता है। इस भोग को लगाने से मां कुष्मांडा प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर अपना आशीर्वाद बनाए रखती हैं।कुष्मांडा देवी को सफेद कुम्हड़े यानी समूचे पेठे के फल की बलि दें।ब्रह्मांड को कुम्हरे के समान माना जाता है, जो कि बीच में खाली होता है। देवी ब्रह्मांड के मध्य में निवास करती हैं और पूरे संसार की रक्षा करती हैं। अगर साबुत कुम्हरा न मिल पाए तो मां को पेठे का भी भोग लगा सकते हैं।