प्रत्येक वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी मनाई जाती है। माताएं अपने बच्चों के सुखी जीवन, उनकी खुशहाली, लंबी आयु और उनके जीवन में धन-धान्य की बढ़ोतरी के लिए व्रत करती हैं। इस दिन माता अहोई की पूजा का विधान है। अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं अपने बच्चों के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। पूरे दिन बिना पानी पिए और बिना कुछ खाए अहोई अष्टमी को माताएं अपने बच्चों के भाग्योदय की कामना करती हैं। इस उपवास को वे महिलाएं भी रखती हैं, जिन्हें संतान की चाह होती है।
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, अहोई अष्टमी का व्रत रखने से निसंतान दंपति को तेजस्वी संतान की प्राप्ति होती है। इसके अलावा अहोई अष्टमी का व्रत करने से संतान पर आने वाली हर बला टल जाती है और उसका जीवन सुखमय बन जाता है। अहोई माता बच्चों के स्वास्थ्य, खुशी और समृद्धि की रक्षा करती हैं, उनकी वृद्धि और विकास सुनिश्चित करती हैं।
अहोई अष्टमी का त्योहार एक माँ और उसके बच्चे के बीच के गहरे रिश्ते के बारे में है। माताएं अपने बच्चों के कल्याण के लिए अपने गहरे प्यार, भक्ति और प्रतिबद्धता को व्यक्त करने के लिए कठोर व्रत रखती हैं।आज के दिन की पूजा करने के लिए कई महिलाएं चांदी की अहोई बनवाती हैं, तो कई महिलाएं जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना करती हैं, कई लोग दीवार पर एक कागज पर अहोई माता का चित्रांकन करके आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाती हैं। उसी के पास स्याहु (साही) तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक साहूकार के सात बेटे और सात बहुएं थीं। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं और बेटी मिट्टी लाने जंगल गईं। बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों के साथ रहती थी।
मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। स्याहु इस पर क्रोधित होकर बोली कि तुमने मेरे बच्चे को मारा है, अब मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी। स्याहू की बात से डरकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से बचाने की गुहार लगाने लगी और भाभियों से विनती करने लगी कि वे उसकी जगह पर अपनी कोख बंधवा लें। सातों भाभियों में से सबसे छोटी भाभी को अपनी ननद पर तरस आ गया और वो उसने स्याहु से कहा कि आप मेरी कोख बांधकर अपने क्रोध को समाप्त कर सकती हैं।
स्याहु ने उसकी कोख बांध दी। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे हुए, वे जीवित नहीं बचे। सात दिन बाद उनकी मौत हो जाती थी। इसके बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका उपाय पूछा तो पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। पंडित की सलाह मानकर उसने सुरही गाय की सेवा करनी शुरू की। सुरही गाय सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहू से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है।
तब छोटी बहू कहती है कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं। आप मेरी कोख खुलवा दें तो आपकी बहुत मेहरबानी होगी। सेवा से प्रसन्न सुरही गाय छोटी बहु को स्याहु माता के पास ले जाती है। वहां जाते समय रास्ते में दोनों थक कर आराम करने लगते हैं।
अचानक साहूकार की छोटी बहू देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है। तभी छोटी बहू सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और अपने बच्चे को जीवित देखकर प्रसन्न होती है। इसके बाद वो छोटी बहू और सुरही गाय को स्याहु माता के पास पहुंचा देती है।
वहां जाकर छोटी बहू स्याहु माता की सेवा करती है। इससे प्रसन्न स्याहु माता, उसे सात पुत्र और सात बहुओं से समृद्ध होने का का आशीर्वाद देती हैं और घर जाकर अहोई माता का व्रत रखने के लिए कहती हैं। आशीर्वाद के प्रभाव से साहूकार की छोटी बहू को सात बेटे होते हैं, जिससे उसकी सात बहुएं होती हैं। उसका परिवार बड़ा और भरापूरा होता है। वह सुखी जीवन व्यतीत करती हैं।
अहोई माता की आरती
जय अहोई माता, जय अहोई माता ।
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता ॥
जय अहोई माता..॥
ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमलातू ही है जगमाता ।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता ॥
जय अहोई माता..॥
माता रूप निरंजनसुख-सम्पत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता ॥
जय अहोई माता..॥
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता ॥
जय अहोई माता..॥
जिस घर थारो वासावाहि में गुण आता ।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता ॥
जय अहोई माता..॥
तुम बिन सुख न होवेन कोई पुत्र पाता ।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता ॥
जय अहोई माता..॥
शुभ गुण सुंदर युक्ताक्षीर निधि जाता ।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता ॥
जय अहोई माता..॥
श्री अहोई माँ की आरतीजो कोई गाता ।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता ॥
जय अहोई माता, जय अहोई माता ।
आज के दिन माता को प्रसन्न करने के लिए 8 मीठे पुए और पुड़ी का भोग लगाया जाता है। कई लोग आटे का गुलगुला या मैदा का गुलगुला भी बनाते हैं।