51 शक्तिपीठ के नाम - 51 Shakti Peeth
हिन्दू धर्म के अनुसार जहाँ देवी सती के शरीर के अंग गिरे, वहाँ वहाँ शक्ति पीठ बन गईं। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। सामान्यत: 51 शक्ति पीठों के बारे में बताया जाता है। 51 शक्तिपीठ में से 42 भारत में हैं, 4 बांग्लादेश में, 2 नेपाल में, 1 पाकिस्तान में, 1 श्रीलंका में, 1 शक्तिपीठ तिब्बत में स्थापित हैं। इन शक्तिपीठों के अतिरिक्त अनेकानेक मंदिर देश-विदेश में विद्यमान हैं।
शक्तिपीठों से जुड़ी कहानी :
भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्त्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण प्राचीन भक्ति-ग्रन्थों के रूप में बहुत महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। कुछ पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विवरण दिया गया है।
पुराणों के अनुसार सती के शव के विभिन्न अंगों से बावन शक्तिपीठों का निर्माण हुआ था। इसके पीछे यह अंतर्कथा है कि भगवान शिव से प्रतिशोध लेने की इच्छा के साथ दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया,
लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर और अपनी पुत्री सती को नहीं बुलाया।
शंकरजी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी यज्ञ में भाग लेने गईं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।
भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। भगवान शंकर के आदेश पर उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए इधर-उधर घूमने लगे।
तदनंतर सम्पूर्ण विश्व को प्रलय से बचाने के लिए जगत के पालनकर्त्ता भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करते हुए माता सती के देह के 51 टुकड़े कर दिए। शरीर के विभिन्न हिस्से भारतीय उपमहाद्वीप के कई स्थानों पर गिरे और वह शक्ति पीठों के रूप में स्थापित हुए। वर्तमान में यह 51 शक्तिपीठ पाकिस्तान, भारत, श्रीलंका,और बांग्लादेश, के कई हिस्सों में स्थित हैं।
51 शक्तिपीठ के नाम
1. हिंगलाज या हिंगुल
कराची से 125 किमी दूर उत्तर पूर्व में हिंगला या हिंगलाज शक्तिपीठ स्थित है। यहां माता का ब्रह्मरंध (सिर का ऊपरी भाग) गिरा था। यहां देवी कोट्टरी नाम से स्थापित व भैरव को भीम लोचन कहते हैं। कराची से वार्षिक तीर्थ यात्रा अप्रैल के महीने में शुरू होती है। यहां वाहन द्वारा पहुंचने में लगभग 4 से 5 घंटे लगते हैं।
2. शर्कररे
पाकिस्तान के कराची के सुक्कर स्टेशन के निकट यह शक्तिपीठ स्थित है। वैसे इसे नैनादेवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में भी बताया जाता है। यहां माता की आंख गिरी थी। यहां माता के रूप को महिषासुरमर्दिनी व भैरव को क्रोधिश कहते हैं।
3. सुगंधा
बांग्लादेश के शिकारपुर से 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे स्थित है। माता की नासिका गिरी थी यहां। इस शक्तिपीठ में माता को सुनंदा व भैरव को त्र्यंबक कहते हैं। इस शक्तिपीठ का एक अन्य नाम उग्रतारा शक्तिपीठ है।
4. महामाया-अमरनाथ
भारत के कश्मीर में पहलगांव के निकट माता का कंठ (गला) गिरा था। वे यहां महामाया के रूप में स्थापित और भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं।
5. ज्वालाजी
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में माता की जीभ गिरी थी। इसे ज्वालाजी स्थान कहते हैं। यह हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी से 30 किमी दक्षिण में स्थित है, धर्मशाला से 60 किमी की दूरी पर है। इस शक्तिपीठ में माता को सिद्धिदा (अंबिका) व भैरव को उन्मत्त कहते हैं।
6. त्रिपुरमालिनी-जालंधर
पंजाब के जालंधर में देवी तालाब, जहां माता का बायां वक्ष (स्तन) गिरा था। यह निकटतम रेलवे स्टेशन से लगभग 1 किलोमीटर दूर है और शहर के केंद्र में स्थित है। इसकी शक्ति है त्रिपुरमालिनी व भैरव को भीषण कहते हैं।
7. अम्बाजी मंदिर या अरासुरी अम्बाजी मन्दिर
मां अम्बाजी की मूल पीठस्थल कस्बे में गब्बर पर्वत गुजरात एवं राजस्थान की सीमा पर स्थित है। यहां पर पवित्र गुप्त नदी सरस्वती का उद्गम अरासुर पहाड़ी पर प्राचीन पर्वतमाला अरावली में अम्बाजी शक्तिपीठ स्थित है। जहां माता का हृदय गिरा था। यहां माता के रूप को अम्बाजी और भैरव को बटुक भैरव कहते हैं। एक मान्यतानुसार यहीं पर सती का दाह-संस्कार भी हुआ था।
8. गुजयेश्वरी या गुह्येश्वरी मंदिर
नेपाल के काठमाण्डू में पशुपतिनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है गुजयेश्वरीशक्तिपीठ, जहां माता के दोनों घुटने (जानु) गिरे थे। यहां माता के रूप को महाशिरा (महामाया) और भैरव को कपाली कहते हैं।
9. दाक्षायणी
तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के निकट एक पाषाण शिला के रूप में मौजूद हैं देवी। यहां माता का दायां हाथ गिरा था। यहां माता के रूप को दाक्षायणी और भैरव को अमर कहते हैं।
10. बिराज
ओडिशा के उत्कल में यह शक्तिपीठ स्थित है। यहां माता की नाभि गिरी थी। यहां माता के रूप को विमला व भैरव को जगन्नाथ कहते हैं।
11. गंडकी
नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ मंदिर, जहां माता का मस्तक गिरा था। यहां माता के रूप को गंडकी चंडी व भैरव चक्रपाणि हैं।
12. बहुला
पश्चिम बंगाल के अजेय नदी तट पर स्थित बाहुल स्थान पर माता का वाम बाहु (बायां हाथ) गिरा था। इसकी शक्ति है देवी बहुला व भैरव को भीरुक कहते हैं।
13. उज्जयिनी
पश्चिम बंगाल के उज्जयिनी नामक स्थान पर माता की दाईं कलाई गिरी थी। यहां माता के रूप को मंगल चंद्रिका और भैरव को कपिलांबर कहते हैं।
14. त्रिपुर सुंदरी
त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गांव के माता बाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायां पैर गिरा था। पौराणिक कथा के अनुसार, इस स्थान पर माता सती के सीधे पैर के अंगुलियों के निशान आज भी मौजूद है। यहां माता के रूप को त्रिपुर सुंदरी व भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं।
15. भवानी
बांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगांव) जिला के निकट सीताकुण्ड स्टेशन के पास चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दायीं भुजा गिरी थी। यहां माता के रूप को भवानी व भैरव को चंद्रशेखर कहते हैं।
16. त्रिस्रोता - भ्रामरी
पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के शालवाड़ी गांव में तीस्ता नदी पर स्थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायां पैर गिरा था। यहां माता के रूप को भ्रामरी और भैरव को अंबर कहते हैं।
17. कामाख्या
असम के कामगिरि में स्थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता का योनि भाग गिरा था। यहां माता के रूप को कामाख्या व भैरव को उमानंद कहते हैं।
18. प्रयाग ललिता देवी
उत्तर प्रदेश के इलाहबाद (प्रयाग) के संगम तट पर माता के हाथ की अंगुली गिरी थी। यहां माता के रूप को ललिता और भैरव को भव कहते हैं।
19. जयंती
बांग्लादेश के सिलहट जिले में जयंतिया परगना में खासी पर्वत पर जयंती मंदिर, जहां माता की बाईं जंघा गिरी थी। यहां माता के रूप को जयंती और भैरव को क्रमदीश्वर कहते हैं।
20. युगाद्या-जुगाड्या
पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के ही क्षीरग्राम में माता के दाएं पैर का अंगूठा गिरा था। इस स्थान पर माता का शक्तिपीठ बन गया, जहां उन्हें देवी जुगाड्या के नाम से पुकारा जाता है। और भैरव को क्षीर खंडक कहते हैं।
21. कालीघाट शक्तिपीठ
कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था। इस पीठ में महाकाली की भव्य मूर्ति विराजमान है, जिसकी लाल जिह्वा मुख के बाहर निकली हुई है। यहां माता के रूप को कालिका और भैरव को नकुलेश कहते हैं।
22. किरीट
पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के लालबाग़ कोर्ट रोड स्टेशन से मात्र 3 Km और दाहापारा स्टेशन से 5 Km की दूरी पर किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था। यह मंदिर किरीटेश्वरी या मुकुटेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां माता को विमला व भैरव को सांवर्त कहते हैं।
23. विशालाक्षी-मणिकर्णी
उत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी) में मणिकर्णिका घाट पर माता के कान के मणिजडि़त कुंडल गिरे थे। यहां माता को विशालाक्षी मणिकर्णी व भैरव को काल भैरव कहते हैं।
24. कन्याश्रम
कन्याश्रम में माता का पृष्ठ (पीठ) भाग गिरा था। कन्याश्राम को कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्ति पीठ के रूप में भी जाना जाता है। यहां माता को श्रवणी और भैरव को निमिष कहते हैं।
25. सावित्री-कुरुक्षेत्र
हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता की एड़ी (गुल्फ) गिरी थी। इस शक्तिपीठ को सावित्री के नाम से जाना जाता है। यहां माता को सावित्री और भैरव को स्थाणु कहते हैं।
26. गायत्री-मणिबंध
मणिबंध अजमेर से 11 किमी उत्तर-पश्चिम में पुष्कर के पास गायत्री पहाड़ के पास स्थित है जहां माता की (कलाइयाँ) गिरी थी। यहां माता को गायत्री और भैरव को सर्वानंद कहते हैं।
27. श्रीशैल
बांग्लादेश के श्री शैल, जैनपुर गांव, के पास सिल्हैट टाउन में माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। यहां माता को महालक्ष्मी और भैरव को शंभरानंद कहते हैं।
28. देवगर्भा-कांची
पश्चिम बंगाल के कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी। यहां माता को देवगर्भा और भैरव को रुरु कहते हैं।
29. कालमाधव
मध्यप्रदेश के शोन नदी तट के पास माता का बायां नितंब गिरा था जहां एक गुफा है। यहां माता को काली और भैरव को असितांग कहते हैं।
30. शोणदेश
मध्यप्रदेश के अमरकंटक स्थान पर माता का दायां नितंब गिरा था। नर्मदा नदी का उद्गम होने के कारण देवी नर्मदा कहलाईं और भैरव को भद्रसेन कहते हैं।
31. शिवानी-रामगिरि
उत्तरप्रदेश के चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायां वक्ष गिरा था। यहां माता को शिवानी और भैरव को चंड कहते हैं।
32. वृंदावन
उत्तरप्रदेश के मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के केशों का गुच्छा और चूड़ामणि गिरे थे। यहां माता को उमा और भैरव को भूतेश कहते हैं।
33. नारायणी-शुचि
तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है, जहां पर माता के ऊपरी दाढ़ (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। यहां माता को नारायणी और भैरव को संहार कहते हैं।
34. वाराही-पंचसागर
पंचसागर शक्तिपीठ, उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास स्थित है जहां माता सती के निचले दांत गिरे थे। यहां माता को वाराही और भैरव को महारुद्र कहते हैं।
35. करतोयातट - अपर्णा
बांग्लादेश के भवानीपुर गांव के पास करतोया तट स्थान पर माता की बाईं पायल (तल्प) गिरी थी। यहां माता को अर्पणा और भैरव को वामन कहते हैं।
36. श्रीपर्वत-श्रीसुंदरी
श्रीपर्वत शक्तिपीठ लद्दाख में स्थित है।लद्दाख के पर्वत पर माता के दाएं पैर की पायल गिरी थी। यहां माता को श्रीसुंदरी और भैरव को सुंदरानंद कहते हैं।
37. कपालिनी
पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष स्थान पर माता की बायीं एड़ी गिरी थी। यहां माता को कपालिनी (भीमरूप) और भैरव को शर्वानंद कहते हैं।
38. चंद्रभागा-प्रभास
गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर के प्रभास क्षेत्र में माता का उदर (आमाशय ) गिरा था। यहां माता को चंद्रभागा और भैरव को वक्रतुंड कहते हैं।
39. अवंती-भैरव पर्वत
मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ऊपरी ओष्ठ गिरे थे। यहां माता को अवंति और भैरव को लम्बकर्ण कहते हैं।
40. भ्रामरी
महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। यहां माता को भ्रामरी और भैरव को विकृताक्ष कहते हैं।
41. सर्वशैल या गोदावरीतीर
आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र स्थित गोदावरी नदी के तट पर कोटिलिंगेश्वर पर माता के गंड (गाल) गिरे थे। इस स्थान पर भक्त माता के राकिनी या विश्वेश्वरी स्वरूप की पूजा करते हैं और भैरव को वत्सनाभ या दंडपाणि कहते हैंं।
42. विराट
यह शक्तिपीठ राजस्थान में भरतपुर के विराट नगर में स्थित है जहां माता के बाएं पैर कि उंगलियां गिरी थीं। यहां माता को अंबिका और भैरव को अमृतेश्वर कहते हैं।
43. कुमारी
बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर माता का दायां स्कंध (कंधा) गिरा था। यहां माता को कुमारी और भैरव को शिवा कहते हैं।
44. उमा महादेवी-मिथिला
भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता का बायां स्कंध (कंधा ) गिरा था। यहां माता को उमा और भैरव को महोदर कहते हैं।
45. कलिका -नलहाटी
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी। यहां माता को कलिका देवी और भैरव को योगेश कहते हैं।
46. कर्नाट-जयदुर्गा
कर्नाट शक्तिपीठ हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित है जहां माता सती के दोनों कान गिरे थे। यहां माता को जयदुर्गा और भैरव को अभिरु कहते हैं।
47. महिषमर्दिनी-वक्रेश्वर
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में पापहर नदी के तट पर माता का भ्रुमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी ) गिरा था। यहां माता को महिषमर्दिनी व भैरव को वक्रनाथ कहते हैं।
48. यशोरेश्वरी
बांग्लादेश के खुलना जिले में यशोर नाम की जगह है, जहां माता के हाथ और पैर गिरे थे। यहां माता को यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड कहते हैं।
49. फुल्लरा-अट्टहास
पश्चिम बंगाल के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के ओष्ठ गिरे थे। यहां माता को फुल्लरा और भैरव को विश्वेश कहते हैं।
50. नन्दीपुर-नंदिनी
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नंदीपुर स्थित बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था। यहां माता को नंदिनी व भैरव नंदीकेश्वर कहते हैं।
51. इंद्राक्षी
श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी। यह पीठ, नैनातिवि (मणिप्लालम) श्रीलंका के जाफना से 35 किलोमीटर, नल्लूर में है। यहां माता को इंद्राक्षी और भैरव को राक्षसेश्वर कहते हैं।