मकर संक्रांति भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में पूरे भारत में मनाया जाता है। ज्योतिष में कुल 12 राशियाँ होती हैं। मेष , वृषभ , मिथुन , कर्क , सिंह , कन्या , तुला , वृश्चिक , धनु , मकर , कुम्भ , मीन । पौष मास में जिस दिन सूर्य धनु राशि छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है उस दिन यह पर्व मनाया जाता है। यह त्यौहार जनवरी माह चौदहवें या पंद्रहवें दिन ही है।
मकर संक्रांति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करता है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को ' उत्तरायण ' कहा जाता है। मकर संक्रांति के साथ ही सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और सभी शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। शास्त्रों में सूर्य उत्तरायण की स्थिति का बहुत अधिक महत्व है । सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा और रातें छोटी होनी शुरू हो जाती हैं ।
मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा सागर में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है। इसीलिए कहा जाता है-"सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार"।
मकर संक्रांति पर सूर्य देव के रथ से खर ( गधा) निकल जाते हैं और फिर सातों घोड़े सूर्य देव के रथ को खींचने लगते हैं, इससे सूर्य देव का वेग और प्रभाव बढ़ता है, इसलिए इस दिन से शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं और मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है । कुछ हिंदू मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति वह दिन है जब भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्त्व बताते हुए गीता के आठवें अध्याय में कहा है कि उत्तरायण में शरीर त्यागने से व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से पूर्णत: मुक्त हो जाते हैं। ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अन्धकार में शरीर का त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। यही कारण है कि महाभारत में भीष्म पितामह ने 58 दिनों तक बाणों की शैय्या पर रहने के बावजूद भी अपने प्राण त्यागने के लिए भी सूर्य देव के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा की। पितामह भीष्म ने मकर संक्रांति के दिन प्राण त्यागे थे और उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।
संक्रान्ति काल अति पुण्य माना गया है। इस दिन गंगा तट पर स्नान व दान का विशेष महत्व है। इस दिन गए अच्छे कर्मों का फल अति शुभ होता है। मकर संक्रांति के दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। इस दिन शुद्ध घी, वस्त्र एवं कंबल का दान करना शुभ माना जाता है। इस दिन तिल और चावल के दान का विशेष महत्व है। इसका दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है
उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से ' दान का पर्व' है। गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेला के नाम से जाना जाता है । इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों और पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। उत्तर प्रदेश में इस पर्व को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है और इस दिन खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है।
बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कंबल आदि दान करने का अपना महत्व है। महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर सिक्का, तेल व नमक आदि वस्तुएं अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। लोग एक दूसरे को तिल और गुड़ देते समय कहते हैं:- `तिल गुड़ ध्या और गोड़ गोड़ बोला` यानी तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो।
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है। पहला दिन भोगी-पोंगल, दूसरा दिन सूर्य-पोंगल, तीसरा दिन मट्टू-पोंगल या केनु-पोंगल और चौथा और अंतिम दिन कन्या-पोंगल। राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वियाना लेकर आशीर्वाद लेती हैं । साथ ही महिलाएं भी स्वेच्छा से वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन व संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं ।
देवभूमि उत्तराखंड में इस मुख्य पर्व मकर सक्रांति को घुघुतिया उत्सव के नाम से जाना जाता है। असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू या भोगाली-बिहू के नाम से जाना जाता है।
सनातन धर्म में हर त्यौहार से कोई न कोई परंपरा जुड़ी हुई है। इसी तरह मकर संक्राति के दिन भी पतंग उड़ाने का रिवाज है। मकर संक्रांति के दिन भगवान श्री राम ने जो पतंग उड़ाई थी, वो इंद्रलोक तक पहुंच गई थी। यही वजह है कि इस दिन पतंग उड़ाई जाती है। मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाकर एक-दूसरे को गले लगाकर भाईचारा और खुशी का संदेश दिया जाता है।
पतंग को खुशी, आजादी और शुभता का संकेत माना जाता है। मकर संक्रांति पर सूर्य देव उत्तरायण हो जाते हैं। इस समय सूर्य की किरणें औषधि का काम करती हैं। इसलिए इस पर्व पर पतंग उड़ाने को शुभ माना जाता हैं। पतंग को धूप में उड़ाया जाता है, जिससे हमारे शरीर को विटामिन-डी भरपूर मात्रा में मिलता है और स्किन से सम्बंधित बीमारियां नहीं होती हैं।