माघ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। षटतिला एकादशी का व्रत सभी एकादशियों के व्रत में महत्वपूर्ण माना जाता है। इस एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु का पूजन तिल से करने का विधान है। इस दिन पूजन में तिल के 6 प्रयोग किए जाते हैं। इस कारण ही इस व्रत को षटतिला एकादशी कहा जाता है।
1. तिल से स्नान
2. तिल का उबटन
3. तिल का हवन
4. तिल का तर्पण
5. तिल का भोजन
6. तिलों का दान
एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं। इस दिन व्रत रखने से मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं, वैवाहिक जीवन सुखमय और खुशहाल बनता है और एकादशी व्रत की कथा सुनने एवं पढ़ने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन सच्चे मन से साथ भगवान श्री हरि की पूजा अर्चना करना चाहिए। भगवान विष्णु मनुष्य के सभी पापों को नष्ट कर जीवन में सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
षटतिला एकादशी व्रत की कथा
एक बार नारद मुनि ने भगवान श्रीहरि से षटतिला एकादशी का माहात्म्य पूछा, वे बोले - 'हे प्रभु! आप मेरा प्रणाम स्वीकार करें। षटतिला एकादशी के उपवास का क्या पुण्य है? उसकी क्या कथा है, कृपा कर मुझसे कहिए।
नारद की प्रार्थना सुन भगवान श्रीहरि ने कहा - 'हे नारद! मैं तुम्हें प्रत्यक्ष देखा सत्य वृत्तांत सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो-
बहुत पहले मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदा व्रत-उपवास किया करती थी। यद्यपि वह अत्यंत धर्मपारायण थी लेकिन कभी पूजन में दान नहीं करती थी। न ही उसने कभी देवताओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान किया था।
एक बार वह एक मास तक उपवास करती रही, इससे उसका शरीर बहुत कमजोर हो गया। मैंने चिंतन किया कि इस ब्राह्मणी ने उपवास आदि से अपना शरीर तो पवित्र कर लिया है तथा इसको वैकुंठ लोक भी प्राप्त हो जाएगा, किंतु इसने कभी अन्नदान नहीं किया है, अन्न के बिना जीव की तृप्ति होना कठिन है।
ऐसा चिंतन कर मैं मृत्युलोक में गया और उस ब्राह्मणी से अन्न की भिक्षा मांगी। इस पर उस ब्राह्मणी ने कहा-हे योगीराज! आप यहां किसलिए पधारे हैं? मैंने कहा- मुझे भिक्षा चाहिए। इस पर उसने मुझे एक मिट्टी का पिंड दे दिया। मैं उस पिंड को लेकर स्वर्ग लौट आया। कुछ समय व्यतीत होने पर वह ब्राह्मणी शरीर त्यागकर स्वर्ग आई।
मिट्टी के पिंड के प्रभाव से उसे उस जगह एक आम वृक्ष सहित घर मिला, किंतु उसने उस घर को अन्य वस्तुओं से खाली पाया। वह घबराई हुई मेरे पास आई और बोली - 'हे प्रभु! "मैं तो धर्मपरायण हूँ, मैंने अनेक व्रत आदि से आपका पूजन किया है, किंतु फिर भी मेरा घर वस्तुओं से रिक्त है, इसका क्या कारण है?"
तब मैंने उसे बताया कि यह अन्न दान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है। मैंने कहा - कि तुम बैकुंठ लोक की देवियों से मिल कर षटतिला एकादशी व्रत और दान का महात्म सुनों। उसका पालन करो, तुम्हारी सारी भूल गलतियां माफ होंगी और मनोकामनाएं पूरी होंगी। ब्राह्मणी ने देवियों से षटतिला एकादशी का माहत्म सुना और इस बार व्रत करने के साथ तिल का दान किया।
व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न-धन से भर गई। इसलिए हे नारद! इस बात को सत्य मानों कि जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्नदान करता है, उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है। इस एकादशी व्रत के करने से दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।