महाशिवरात्रि का त्योहार हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का अर्थ होता है 'भगवान शिव की रात'। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।
इसलिए इस त्योहार को शिव और पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन पूरी श्रद्धा के साथ माता पार्वती और शिव की पूजा-उपासना करने वाले भक्तों पर भगवान भोलेनाथ जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं।
इस दिन जो भक्त भगवान शिव की पूजा करते समय बिल्वपत्र, शहद, दूध, दही, शक्कर और गंगाजल से अभिषेक करता है दिनभर उपवास करके और रात्रि भर जागरण करता है, तो भगवान शिव भक्त की सभी समस्याएं दूर करते हैं और उसकी सभी इच्छाएं पूरी करते हैं, नरक से बचाते हैं और आनन्द एवं मोक्ष प्रदान करते हैं।
महाशिवरात्रि की पूजा विधि
महाशिवरात्रि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर के साफ वस्त्र धारण करें और सूर्य देव को जल अर्पित करें, भगवान शिव की आराधना करें। चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद उनका गंगाजल, कच्चे दूध और दही समेत विशेष चीजों से अभिषेक करें।
प्रतिमा के आगे दीपक जलाकर भगवान शिव और मां पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करें। इसके बाद एक लोटा जल मंदिर में जाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। शिवलिंग पर, बेलपत्र, नैवेद्य, भांग, धतूरा, फल, आंक के फूल समेत आदि चीजें अर्पित करें महादेव की आरती और शिव चालीसा का पाठ करें। साथ ही भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का 108 बार ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करें
महाशिवरात्रि के दिन प्रात:काल में भगवान शिव की आराधना करने के साथ-साथ रात्रि में जाग कर चारों प्रहर पूजन करने का विधान माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार इसी रात्रि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए माता पार्वती ने चारों पहर भगवान शिव की पूजा की थी।
इसलिए महाशिवरात्रि पर चारों पहर की पूजा का विशेष महत्व है। जो लोग भगवान शिव की चारों पहर की पूजा करना चाहते हैं उन्हें रात्रि के पहले पहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे पहर में घी और चौथे पहर में शहद से पूजन करना चाहिए।
महाशिवरात्रि व्रत कथा
महाशिवरात्रि के अवसर पर महाशिवरात्रि कथा जरूर पढ़ें। अगर आप व्रत नहीं रखते हैं तब भी महाशिवरात्रि की कथा को पढ़ें और सुनें तो पुण्य के भागी बनेंगे। एक बार पार्वतीजी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत - पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं ? उत्तर में शिवजी ने पार्वतीजी को शिवरात्रि के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई -
पूर्वकाल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। उस चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी।
जिससे उसके मन में शिव के प्रति अनुराग उत्पन्न होने लगा। शिव कथा सुनने से उसके पाप क्षीण होने लगे। वह यह वचन देकर कि अगले दिन सारा ऋण लौटा दूंगा जंगल में शिकार के लिए चला गया। शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया। शाम हो गयी किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला।
सूर्य अस्त होने के पश्चात चित्रभानु एक जलाशय के पास गया और वहाँ उसे घाट के किनारे एक पेड़ दिखाई दिया। वह पीने के लिए थोड़ा सा पानी लेकर उस पेड़ पर चढ़ गया क्योंकि उसे यकीन था कि कोई न कोई पशु वहाँ पानी पीने अवश्य आयेगा। जिस पेड़ पर वह चढ़ा था वह एक बेलपत्र का पेड़ था। उसी वृक्ष के नीचे शिवलिंग भी स्थापित था जो सूखे बेलपत्रों से ढका हुआ था। जिससे वह शिकारी को दिखाई नहीं दे रहा था।
भूख-प्यास से परेशान शिकारी ने बैठने के लिए वहीं एक मचान बना ली। मचान बनाने के लिए चित्रभानु ने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर जा गिरीं। प्रतीक्षा, तनाव और दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी बेल के पत्ते तोड़ता और नीचे फेंक देता वो बिल्बपत्र शिवलिंग पर गिरते गए इस प्रकार पूरा दिन उस शिकारी ने कुछ भी खाया-पिया नहीं, जिससे उसका व्रत भी हो गया और साथ ही शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।
रात्रि के प्रथम प्रहर में ही पर एक गर्भवती हिरणी जलाशय पर पानी पीने पहुँची। उसे देख शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर जैसे ही प्रत्यंचा तानी, उसके हाथ के झटके से कुछ बेलपत्र और पानी की बूंदे नीचे शिवलिंग पर गिर गईं। जिससे फिर से अनजाने में चित्रभानु की प्रथम प्रहर की पूजा हो गयी। हिरणी बोली, 'मैं गर्भवती हूँ, शीघ्र ही प्रसव करूँगी तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे जो ठीक नहीं है मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊँगी। शिकारी को दया आ गई उसने हिरनी को जाने दिया, अतः अनजाने में ही वह प्रथम प्रहर के शिव पूजा का फलभागी हो गया।
कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। हिरणी के नजदीक आने पर शिकारी ने दोबारा धनुष पर बाण चढ़ा लिया। जिससे फिर से थोड़े से बेलपत्र नीचे शिवलिंग पर चढ़ गए। और शिकारी की द्वितीय पहर की पूजा भी हो गयी। चित्रभानु उसे मारने ही वाला था कि हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, हे शिकारी ! मैं अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ, अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। अतः अनजाने में इस प्रहर में भी उसके द्वारा बेलपत्र शिव लिंग पर चढ़ गये।
कुछ देर बाद एक और हिरणी अपने बच्चों के साथ जलाशय के किनारे जल पीने के लिए आयी, जैसे ही वह हिरनी को मारना चाहा हिरणी बोली, 'हे शिकारी ! मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंप कर लौट आऊँगी इस समय मुझे मत मारो। हिरणी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर भी दया आ गई। उसने उस हिरनी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था, रातभर शिकारी के तनाव वश बेलपत्र नीचे फेंकते रहने से शिवलिंग पर अनगिनत बेलपत्र चढ़ गये।
सुबह एक मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने ज्यों ही उसे मारना चाहा वह भी करुण स्वर में बोला हे शिकारी ! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों और बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मार दो ताकि मुझे उनके वियोग का दुःख न सहना पड़े मैं उन हिरणियों का पति हूँ यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है, तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो, मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊँगा।
शिकारी ने उस हिरण को भी जाने दिया। सुबह हो गई उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर अनजाने में चढ़े बेलपत्र के फलस्वरूप शिकारी का हृदय अहिंसक हो गया। उसमे शिव भक्तिभाव जागने लगा थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता और प्रेम के प्रति समर्पण देखकर शिकारी को भीतर से बड़ी ग्लानि हुई। इस कारण चित्रभानु की आँखों से आँसू बहने लगे। और उसने सम्पूर्ण मृग परिवार को छोड़ दिया। इसके बाद उस शिकारी का मन सदा के लिए निर्मल हो गया।
इस सम्पूर्ण घटना को देवलोक से सभी देवता गण भी देख रहे थे। तब भगवान भोलेनाथ ने शिकारी की दयालुता से खुश होकर तुरंत उसे दर्शन दिए। साथ ही शिकारी को सुख-समृद्धि का वरदान देकर शिवशंभू ने गुह नाम भी प्रदान किया। यह वही गुह नामक व्यक्ति था जिसके साथ प्रभु श्री राम ने मित्रता की थी।
इस प्रकार रात्रि के चारों प्रहर में हुई शिव पूजा से उसे शिवलोक कि प्राप्ति हुई ! अतः भोलेनाथ की पूजा चाहे जिस अवस्था में करें उसका फल मिलना निश्चित है यही परम सत्य भी है।