राम नवमी हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। जो सामान्यत: मार्च या अप्रैल के महीने में पड़ती है। प्रभु श्रीराम भगवान विष्णु के 7वें अवतार थे। जो 12 कलाओं से युक्त थे, इन्हें सूर्यवंशी भी कहा जाता है। राम नवमी को भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्रीराम का जन्म राजा दशरथ और माता कौशल्या के यहां हुआ था। श्रीराम का जन्म मध्याह्न काल में हुआ था।
भगवान श्रीराम का जीवन भक्तों को सत्य, नैतिकता, और धर्म की महत्वपूर्ण शिक्षाएं सिखाती है। राम नवमी के दिन, भक्त भगवान राम की पूजा-अर्चना करते हैं। बहुत से मंदिर राम नवमी के दिन भगवान राम के लिए विशेष पूजाओं का आयोजन करते हैं।
इस दिन भगवान राम की मूर्ति के साथ विशेष रूप से तैयार किया हुआ रथयात्रा का आयोजन किया जाता है। इस रथयात्रा में भक्तों द्वारा राम, सीता, हनुमान और उनके भाइयों की प्रतिमाएं विशेष ढंग से सजाकर निकाली जाती हैं।
जो मनुष्य पूरे विधि विधान से श्री राम जी की पूजा-अर्चना करता है। उसके सुख - सौभाग्य में वृद्धि होती है साथ ही वह समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति भी होती है।
राम मूल मंत्र
ॐ श्री रामाय नमः॥ इस मंत्र का जाप आरोग्य एवं आर्थिक संपन्नता प्रदान करता है। साथ ही व्यक्ति को गृह-क्लेश से भी मुक्त करता है।
श्री राम जय राम जय जय राम॥ यह मंत्र स्वयं में संपूर्ण माना जाता है। इसके जाप मात्र से मनुष्य प्रभु कृपा का अधिकारी बन जाता है। इसे कही भी, कभी भी, कोई भी जप सकता है।
आरती श्री रामचंद्र जी
भगवान श्री राम की आरती सब कष्टों और दुखों को हरने वाली है और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाली है। भगवान श्री राम की आरती करने से घर की जितनी भी नकारात्मक शक्तियां है, वह नष्ट हो जाती है। घर में माता लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है।
आरती
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।