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जनम तेरा बातों ही बीत गयो,
जनम तेरा बातों ही बीत गयो,
तूने कबहुँ न राम कहयो,
तूने कबहुँ न कृष्ण कहयो,
जनम तेरा बातों ही बीत गयो।
पाचँ बरस का भोला-भाला,
अब तो बीस भयो,
मकर पचीसी माया कारण,
देश विदेश गयो,
जनम तेरा बातों ही बीत गयो।
तीस बरस की जब मति उपजी,
नित नित लोभ नयो,
माया जोरी लाख करोरी,
अजहुँ न तृप्त भयो,
जनम तेरा बातों ही बीत गयो।
वृद्ध भयो तब आलस उपजी,
कफ नित कंठ रहयो,
संगत कबहुँ नाही किन्ही,
बिरथा जनम लियो,
जनम तेरा बातों ही बीत गयो।
ये संसार मतलब का लोभी,
झूठा ठाठ रचियो,
कहत कबीर समझ मन मूरख,
तू क्यूँ भूल गयो,
जनम तेरा बातों ही बीत गयो।
तूने कबहुँ न राम कहयो,
तूने कबहुँ न कृष्ण कहयो,
जनम तेरा बातों ही बीत गयो,
जनम तेरा बातों ही बीत गयो।