हिंदू पंचांग के अनुसार ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। एक महीने में दो पक्ष होने के कारण दो एकादशी होती हैं, एक शुक्ल पक्ष मे तथा दूसरी कृष्ण पक्ष मे। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी कहा जाता है तो अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामिका एकादशी के नाम से जाना जाता है।
कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। श्रावण माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली इस एकादशी पर भगवान विष्णु को तुलसी पत्र चढ़ाने से जाने-अनजाने में हुए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन तीर्थ स्नान और दान से कई गुना पुण्य फल मिलता है।
कामिका एकादशी का व्रत व्यक्ति के सभी पापों को उसके वर्तमान जीवन के साथ-साथ पिछले जन्मों से भी दूर करने में मदद करता है। कामिका एकादशी के दिन व्रत करने से भगवान विष्णु के साथ-साथ भोले बाबा यानी भगवान शिव की भी कृपा प्राप्त होती है।
भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करते हुए धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा कि हे प्रभु, मैंने आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी का महात्म्य तो सुन लिया, अब आप कृपा करके, मुझे श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है ? उसका व्रत करने से क्या लाभ होता है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे विस्तारपूर्वक बताइए।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ‘‘राजन् ! मैं तुम्हें एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकाल में नारदजी के पूछने पर ब्रह्माजी ने बताया था ।’’ भगवान ब्रह्माजी के चरणों में नारदजी ने प्रार्थना की ‘‘हे देव ! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में कौन-सी एकादशी होती है और उसका क्या माहात्म्य है, कृपया मुझे सुनाइये ।’’
ब्रह्माजी ने कहा ‘‘नारद ! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी होती है उसका नाम ‘कामिका’ है। कामिका एकादशी के उपवास में शंख, चक्र, गदाधारी भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। जो मनुष्य इस एकादशी पर धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उन्हें गंगा स्नान के फल से भी उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण में केदार और कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जिस पुण्य की प्राप्ति होती है, वह पुण्य कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करने से प्राप्त हो जाता है। भगवान विष्णु की श्रावण माह में भक्तिपूर्वक पूजा करने का फल समुद्र और वन सहित पृथ्वी दान करने के फल से भी ज्यादा होता है।
संसार में भगवान की पूजा का फल सबसे ज्यादा है, अतः भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा न बन सके तो श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी का उपवास करना चाहिए। आभूषणों से युक्त बछड़ा सहित गौदान करने से जो फल प्राप्त होता है, वह फल कामिका एकादशी के उपवास से मिल जाता है।
इस व्रत को करने तथा श्रीहरि की पूजा से गंधर्वों एवं नागों सहित सभी देवी देवताओं की पूजा हो जाती है। यह व्रत मनुष्यों के पितरों के पापों को धो देता है। इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग की प्राप्ति होती है तथा उसके पित्र भी स्वर्ग में अमृतपान करते हैं। संसार सागर तथा पापों में फँसे हुए मनुष्यों को इनसे मुक्ति के लिए कामिका एकादशी का व्रत करना चाहिये। कामिका एकादशी के उपवास से भी पाप नष्ट हो जाते हैं।
जो मनुष्य इस दिन तुलसीदल से भक्तिपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, वे इस संसार सागर में रहते हुए भी इस प्रकार अलग रहते हैं, जिस प्रकार कमल पुष्प जल में रहता हुआ भी जल से अलग रहता है। जो मनुष्य प्रभु का तुलसीदल से पूजन करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
हे नारदजी! मैं भगवान की अति प्रिय श्री तुलसीजी को प्रणाम करता हूँ। तुलसीजी के दर्शन मात्र से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और शरीर के स्पर्श मात्र से मनुष्य पवित्र हो जाता है। तुलसीजी को जल से स्नान कराने से मनुष्य की सभी यम यातनाएं नष्ट हो जाती हैं। जो मनुष्य तुलसीजी को भक्तिपूर्वक भगवान के श्रीचरण कमलों में अर्पित करता है, उसे मुक्ति मिलती है।
इस कामिका एकादशी की रात्रि को जो मनुष्य जागरण करते हैं और दीप-दान करते हैं, उनके पुण्यों को लिखने में चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं। एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान के सामने दीपक जलाते हैं, उनके पितर स्वर्गलोक में अमृत का पान करते हैं।
पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर को एकादशी का महत्व समझाते हुए कहते है कि जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, देवताओं में श्री विष्णु, वृक्षों में पीपल तथा मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी श्रेष्ठ है।
कामिका एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान से निवृत होकर स्वच्छ और पीले रंग के वस्त्र पहनें। भगवान विष्णु के समक्ष हाथ में अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और चारों तरफ गंगाजल से छिड़काव करें, फिर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान विष्णु की पूजा करें।
भगवान विष्णु को पीला रंग बहुत प्रिय है इसलिए भगवान को पीले फूल, पीले फल, चंदन, जनेऊ, गंध, अक्षत, पुष्प, तिल, धूप-दीप, नैवेद्य, पान, नारियल आदि अर्पित करें। घी का दीपक जलाएं और कपूर से आरती उतारें। इस दिन ‘विष्णुसहस्त्रानम्’ का पाठ करने से सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती है। इसके बाद कामिका एकादशी की कथा का श्रवण या वाचन करें।
पूरे दिन विष्णु जी के नाम का जप एवं कीर्तन करते हुए यह व्रत पूरा करना चाहिए। कामिका एकादशी के दिन जो व्यक्ति भगवान के सामने घी अथवा तिल के तेल का अखंड दीपक जलाता है उसके पुण्यों की गिनती चित्रगुप्त भी नहीं कर पाते हैं। उनको सूर्य लोक में भी सहस्रों दीपकों का प्रकाश मिलता है।
कालांतर में किसी गांव में एक बेहद बलशाली क्षत्रिय रहता था। उसे अपने बल पर बेहद अहंकार का भाव था। हालांकि, वह धर्म परायण था। नित प्रतिदिन जगत के पालनहार विष्णु की पूजा उपासना करता था। एक दिन वह किसी विशेष कार्य हेतु कहीं जा रहा था। मार्ग में उसकी भिंड़त एक ब्राह्मण से हो गई। उस समय वह आवेग में आ गया। ब्राह्मण व्यक्ति उसे कुछ समझाता।
उससे पूर्व ही वह ब्राह्मण से हाथापाई करने लगा। ब्राह्मण बेहद दुर्बल था। वह बलशाली क्षत्रिय के प्रहार को सहन न कर पाया। इसके चलते तत्काल ही उसकी मृत्यु हो गई। उस समय बलशाली क्षत्रिय सकते में आ गया। वह प्रायश्चित करने लगा। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ कि उसने बल के दम पर निर्बल ब्राह्मण की हत्या कर दी। आवेग में आकर ब्राह्मण व्यक्ति की हत्या करने से वह बेहद दुखी था।
सूचना पूरे गांव में आग की तरह फैल गई। क्षत्रिय व्यक्ति ने गांव वालो से क्षमा याचना की। साथ ही ब्राह्मण का अंतिम संस्कार विधि विधान से करने करने का वचन दिया। हालांकि, पंडितों ने अंतिम क्रिया में शामिल होने से इंकार कर दिया। उस समय क्षत्रिय ने क्षमा याचना कर फल जानना चाहा। तब पंडितों ने कहा कि 'ब्रह्म हत्या दोष' का प्रायश्चित करने के पश्चात हमलोग आपके गृह पर भोजन ग्रहण करेंगे।
यह सुन क्षत्रिय ने 'ब्रह्म हत्या दोष' प्रायश्चित करने का उपाय पूछा। पंडितों ने कहा कि सावन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विधि विधान से जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा उपासना करें। साथ ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दक्षिणा दें। ऐसा करने से आप 'ब्रह्म हत्या दोष' से मुक्त हो जाएंगे। कालांतर में क्षत्रिय ने ब्राह्मण व्यक्ति का दाह संस्कार किया।
ब्राह्मणों के वचनानुसार, सावन मास के कामिका एकादशी तिथि पर क्षत्रिय ने विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा-उपासना की। साथ ही ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दक्षिणा दिया। उसी रात क्षत्रिय के सपने में भगवान विष्णु आकर बोले-तुम्हारी भक्ति और पूजा से मैं प्रसन्न हूं। आज के दिन विधि विधान से तुमने मेरी पूजा की। इस व्रत के पुण्य प्रताप से तुम्हे ब्रह्म हत्या दोष से मुक्ति मिल गई है।
तब से, कामिका एकादशी व्रत की परंपरा प्रारंभ हुई और इसे विधि-विधान से पालन किया जाता है। इस व्रत के करने से ब्रह्म-हत्या आदि के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इस लोक में सुख भोगकर प्राणी अन्त में विष्णुलोक को जाते हैं। इस कामिका एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं।
इस प्रकार श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर जी को विस्तार पूर्वक कामिका एकादशी के महात्म्य के बारे में बताया। आप इस व्रत के दौरान इस कथा को सुनकर पुण्य के भागीदार बन जाते हैं। महान पुण्यफल व स्वर्गलोक प्रदान करनेवाली कामिका एकादशी का जो मनुष्य श्रद्धा के साथ माहात्म्य श्रवण करता है वह सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में जाता है ।