॥ दोहा ॥
ॐ दन्तेश्वर्ये नमः पावन मंत्र पुनीत ।
सत्य सनातन शाश्वती, बीजक रूप प्रतीक ।।
अगम अगोचर अम्बिके निगुण निर्विकार ।
आदिशक्ति जगतारिणी, सगुण रूप साकार ।।
।। चौपाई।।
दंतेश्वरी देवी जगदम्बे । नमो नमः भानेश्वरी अम्बे ।।
शिवानी पार्वती जगमाता । दंतेश्वरी श्यामांगी सुजाता ।।
दुर्गा काली नाम तुम्हारे । बहुविधि रूप भक्त हित धारे।।
शरण गहे जो शीश नवावैं। काल कटे पुनि पाप नशावै ।।
डंकिनी शंखिनी संगम पावन। भव्यधाम स्थित मनभावन ।।
बंजारिन है स्वागत द्वारे। दर्शन निशिदिन साँझ सकारे ।।
भानेश्वरी का पुण्य बसेरा । सख्यभाव अनुजा का डेरा।।
शक्ति सती शाम्भवी भवानी। गौरी शारदे माँ कल्याणी ।।
वारंगल से जगहित आई। करता चला नृपति अगुआई ।।
वचनबद्ध प्राप्त वरदाना। नुपुर ध्वनि जब सुना न काना ।।
लखा पलट ज्यौं दिव्य उजाला हो गया शिला खण्ड तत्काला।।
यज्ञकथा कविगण बहुबरनी। दक्ष सुता जग मंगल करणी।।
त्यागी प्राण जब अनल मंझारी । देह धरे घूमत त्रिपुरारी।।
अंग विमोचित हुए जहाँ पर। पुण्य पीठ समरूप वहाँ पर ।।
दन्तसती माँ के स्थापित । श्री दंतेश्वरी सिद्ध शक्तिपीठ ।।
शिवशंकर का मानस निजगण रक्षक बन जो स्थित प्रतिक्षण ।।
तेहि अवसर नित भैरव तत्पर । चरणचिन्ह द्वय अंकित प्रस्तर ।।
ऐसे आन बसी दण्डक वन। माता कलिमल शोक नशावन ।।
नदी तीर मंदिर अति सुंदर । भवन दूसरा स्थित डोंगर ।।
जगदलपुर तो प्रति संवत्सर। माता गमन करे संग अनुचर ।।
अद्भुत बस्तर पर्व दशहरा । सीरासार जनु पुष्पक उतरा ।।
भीतर रैनी बाहिर रैनी। जोगी बिठाई जोगी उठनी ।।
आदि कुमारी काछिन गादीं। कुम्हड़ाकोट की यात्रा साधी ।।
बाजै तुरही ढोल मंजीरा । देव चढ़े फिर नाचत धीरा ।।
आंगा मावली अरू नर-नारी। देवी-देवता माँझी पुजारी ।।
रथ पर शोभित ध्वजा पताका। छत्र चँवर डोलीयुत् माता ।।
विजयादशमी पूर्ण करावै। दर्शन दे जग धाम को आवै ।।
नवरात्रि द्वय छटा निराली। मानो नगर होय दीवाली ।।
ज्योति कलश की जगमग माला। झिलमिल पुंजित धवल उजाला ।।
घृत अरु तेल की निर्मल बाती । सतत् अखण्ड जले नवरात्री ।।
अलौकिक सिद्धि यंत्र की पूजा। और मही पर ठौर न दूजा ।।
इंद्रजाल सब जादू टोना । रोग शोक यम से रखवाली।।
निरखत काँपै नाम दिठौना। भूत पिशाच शत्रु बलशाली ।।
असुर मर्दिनी षट्भुज धारी। भूषण वसन तदपि अवकारी ।।
जयति जय दन्तेश्वरी माई। जड़ चेतन कण कण में समाई।।
धर्म धुरंधर पंडित ज्ञानी। भूपति रंक सब भिक्षु दानी।।
तांत्रिक मांत्रिक यती तपस्वी। साधु औघड़ सिद्ध यशस्वी ।।
ब्रह्मचारी गृहस्थी खेवक । वानपस्थी सन्यासी सेवक ।।
जो साधक ध्यावै चितलाई। सुमिरन करत सफल सेवकाई ।।
पाठ करे जो यह चालीसा। संकट हरै मिटै सब क्लेशा ।।
।। दोहा।।
चरण कमल की साधना, भक्ति का व्यापार ।
श्रद्धा का सौद सुलभ, दर्शन का उपहार ।।