कान्हा मुझको तुम्हारी कृपा चाहिये
कुछ नहीं बस तुम्हारी
दया चाहिये
ना तिजोरी ना धन
ना महल ना भवन
तेरे चरणों में ही
आसरा चाहिये
कान्हा मुझको तुम्हारी
कृपा चाहिये
कुछ नहीं बस तुम्हारी
दया चाहिये
ओ ..कान्हा मुझको तुम्हारी
कृपा चाहिये
कुछ नहीं बस तुम्हारी
दया चाहिये॥
जो नहीं हो सका
वो भी अच्छा हुआ
हो रहा है जो
वो भी नहीं है बुरा
ना नदी ना पवन
ना धरा ना गगन
तुम बनो मेरे साथी
सखा चाहिये
कान्हा मुझको तुम्हारी
कृपा चाहिये
कुछ नहीं बस तुम्हारी
दया चाहिये
हो ..कान्हा मुझको तुम्हारी
कृपा चाहिये
कुछ नहीं बस तुम्हारी
दया चाहिये॥
हाथ खाली थे
जब जन्म मैंने लिया
जो भी पाया है मैंने
वो तुमने दिया
आये तेरी शरण
गाऊँ तेरे भजन
तुम मुझे मिल गये
और क्या चाहिये
कान्हा मुझको तुम्हारी
कृपा चाहिये
कुछ नहीं बस तुम्हारी
दया चाहिये
हाँ ..कान्हा मुझको तुम्हारी
कृपा चाहिये
कुछ नहीं बस तुम्हारी
दया चाहिये॥