हिंदू पंचांग के अनुसार, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की विधि-विधान से पूजा की जाती है। नाग पंचमी के दिन १२ नाग अनंत, वासुकि, शंख, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अष्ववर, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालिया, तक्षक एवं पिंगल की विधि विधान से पूजा की जाती है।
नाग पंचमी के दिन घर के दरवाजे के दोनों तरफ नाग की आठ आकृतियां बनाए उन्हें गाय के दूध से स्नान कराये और हल्दी, रोली, चावल, घी, दूध, फूल आदि से नाग देवता की पूजा करें। इसके बाद दूध अर्पित करें। देशी घी का दीपक जलाकर आरती कर मंत्रों का जप करें। नाग पंचमी पर श्री सर्प सूक्त का पाठ करना लाभकारी होता है। इस पाठ को करने से काल सर्प दोषों से मुक्ति मिलती है।
ॐ भुजंगेशाय विद्महे,
सर्पराजाय धीमहि, तन्नो नाग: प्रचोदयात्।।
ॐ हँ जू स: श्री नागदेवतायेनमोनम:।।
ॐ श्री भीलट देवाय नम:।।
सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः॥
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः।
ये च वापीतडगेषु तेषु सर्वेषु वै नमः॥
मंत्र का अर्थः इस संसार में, आकाश, स्वर्ग, झील, कुएं, तालाब और सूर्य किरणों में निवास करने वाले सर्प, हमें आशीर्वाद दें और हम सभी आपको बारम्बार नमन करते हैं।
उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। नागचंद्रेश्वर मंदिर में एक अद्भुत प्रतिमा है। इस प्रतिमा में शिव-पार्वती अपने पूरे परिवार के साथ आसन पर बैठे हुए हैं और उनके ऊपर सांप फल फैलाकर बैठा हुआ है।
प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे और सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की और सुशील थी, लेकिन उसका कोई भाई नहीं था। एक दिन उस घर की बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी एक साथ डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने के लिए निकल पड़ीं। जब बहुएं मिट्टी खोद रही थीं तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने का प्रयास करने लगी।
यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोका और कहा यह बेचारा निरपराध है। यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब वो सांप एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा मैं अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। इतना कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और कामकाज में फंसकर सर्प से जो वादा किया था वो उसे भूल गई।
उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो वो सब को साथ लेकर वहां पहुंची। सर्प अभी भी उस स्थान पर बैठा था जिसे देखकर छोटी बहु बोली,भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा मांगती हूं।' तब सर्प बोला: अच्छा, तू आज से मेरी बहिन है और मैं तेरा भाई तुझे मुझसे जो मांगना हो, मांग ले। वह बोली: मेरा कोई भैया! नहीं है, अच्छा हुआ तुम मेरे भाई बन गए।
कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सांप मनुष्य रूप धारण करके छोटी बहु के घर आया और उससे कहा कि मैं इसका दूर के रिश्ते का भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर परिवार के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि मैं वहीं सर्प हूं, इसलिए तू डरना मत और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। छोटी बहू ने वैसा ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। सर्प के घर के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई। इस तरह से वो उसके घर में रहने लगी।
एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा, मैं एक काम से बाहर जा रही हूं, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे इस बात का ध्यान नहीं रहा और उसने सांप को गर्म दूध पिला दिया, जिससे उसका मुख जल गया। यह देखकर सर्प की माता को गुस्सा आ गया। परंतु सर्प के समझाने पर वह चुप हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेजना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चांदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर घर पहुंचा दिया।
इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू उसने जलने लगी और कहने लगी कि तेरा भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने जब ये वचन सुना तो उसने सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा इन वस्तुओं को झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर दे दी।
सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया। जिसकी प्रशंसा उस राज्य की रानी ने भी सुनी और वो राजा से बोली कि सेठ की छोटी बहू का हार मुझे चाहिए। राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि उससे वह हार तुरंत ही ले आओ। मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि महारानी जी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह हमें दे दो। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार लेकर उन्हें दे दिया।
छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सांप भाई को याद किया और उससे प्रार्थना की, भैया! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जैसे ही रानी वो हार पहनें वह सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब वो हार हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प में बदल गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और डर गई। यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो।
सेठजी स्वयं छोटी बहू को लेकर राजा के दरबार में उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से इसका कारण पूछा तो वह बोली, "राजन! धृष्टता क्षमा कीजिए ये हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और अगर इसे कोई और पहनता है तो ये उसके गले में सर्प बन जाता है।" छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया। यह देखकर राजा ने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार दिया।
उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या से उसके पति को उसके विरुद्ध भड़काया जिस कारणवश पति ने अपनी पत्नी के आचरण पर शक किया। तब वह स्त्री फिर से अपने सर्प भाई को याद करने लगी। उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर किसी ने संदेह प्रकट किया तो मैं उसे खा लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का सत्कार किया। कहते हैं उसी दिन से नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाता है और स्त्रियां सांप को भाई मानकर उसकी पूजा करनी लगीं।