रक्षा-बंधन का त्योहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रक्षा-बंधन हिंदू धर्म में भाई-बहन के रिश्ते का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और उनके लंबे, स्वस्थ जीवन की प्रार्थना करती हैं। भाई अपनी बहनों की सुरक्षा का वचन देते हैं। यह रक्षा सूत्र, जिसे आमतौर पर राखी कहा जाता है, बहनें अपने भाइयों के दाहिने हाथ पर बांधती हैं साथ ही, बहनें अपने भाइयों को राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। रक्षा बंधन बहन-भाई के स्नेह और प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
जिन बहनों का कोई भाई नहीं होता, वे अपने पिता, इष्टदेव या घर के किसी पेड़-पौधे को रक्षा सूत्र बांध सकती हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में, इस दिन को झूलन पूर्णिमा भी कहा जाता है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। महाराष्ट्र में कोली समुदाय इस दिन को नारली पूर्णिमा या नारियल दिवस के रूप में मनाता है, जिसमें समुद्र की पूजा की जाती है।
राखी बांधने का तरीका
सबसे पहले सुबह स्नान और पूजा पाठ करके राखी की तैयारियां करें, फिर बहन भगवान गणेश जी का ध्यान करते हुए पहले भगवान को बांधे राखी फिर भगवान का आशीर्वाद लेने के बाद अपने भाई को राखी बांधें। भाई को पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बिठाएं। राखी बांधते समय भाई के सिर पर एक कोई रुमाल या कपड़ा जरूर रखें।
भाई के माथे पर चंदन, कुमकुम और अक्षत का तिलक लगाएं। फिर भाई की दाहिनी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधे। इसके बाद भाई को नारियल देते हुए मिठाई खिलाएं और दीपक जलाकर आरती करें। अंत में अपने इष्ट देवी या देवता का स्मरण करते हुए भाई की सुख-समृद्धि और सौभाग्य के लिए प्रार्थना करें।
रक्षा बंधन की कथा
लक्ष्मी-राजा बलि की कथा
स्कंद पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण की कथा के अनुसार असुरराज दानवीर राजा बलि ने देवताओं से युद्ध करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था और ऐसे में उसका अहंकार चरम पर था। इसी अहंकार को चूर-चूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अदिति के गर्भ से वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में बलि के द्वार भिक्षा मांगने पहुंच गए।
चूंकि राज बलि महान दानवीर थे तो उन्होंने वचन दे दिया कि आप जो भी मांगोगे मैं वह दूंगा। भगवान ने बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली। बलि ने तत्काल हां कर दी। लेकिन तब भगवान वामन ने अपना विशालरूप प्रकट किया और दो पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप लिया। फिर पूछा कि राजन अब बताइये कि तीसरा पग कहां रखूं? तब विष्णुभक्त राजा बलि ने कहा, भगवान आप मेरे सिर पर रख लीजिए और फिर भगवान ने राजा बलि को रसातल का राजा बनाकर अजर-अमर होने का वरदान दे दिया।
लेकिन बलि ने इस वरदान के साथ ही अपनी भक्ति के बल पर भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन भी ले लिया। भगवान को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी के पास जाना था लेकिन भगवान ये वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बलि की सेवा में रहने लगे। उधर, इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो गई। ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया। तब लक्ष्मीजी ने राजा बली को राखी बांध अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं।
शास्त्रों के अनुसार एक बार देव और असुरों में जब युद्ध शुरू हुआ, तब असुर, देवताओं पर भारी पड़ने लगे। ऐसे में देवताओं को हारता देख देवेंद्र इन्द्र घबराकर ऋषि बृहस्पति के पास गए। तब बृहस्पति के सुझाव पर इन्द्र की पत्नी इंद्राणी (शची) ने रेशम का एक धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था।
तब इंद्र ने इस रक्षासूत्र की शक्ति से स्वयं अपने और अपनी सेना के प्राण बचाए थे। जिसके फलस्वरूप इंद्र विजयी हुए। कहते हैं कि तब से ही पत्नियां अपने पति की कलाई पर युद्ध में उनकी जीत के लिए राखी बांधने लगी।