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ॐ जय श्री विश्वकर्मा,
प्रभु जय श्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टि के करता,
रक्षक स्तुति धर्मा ॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा
आदि सृष्टि मे विधि को,
श्रुति उपदेश दिया ।
जीव मात्र का जग में,
ज्ञान विकास किया ॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा
ऋषि अंगीरा तप से,
शांति नहीं पाई ।
ध्यान किया जब प्रभु का,
सकल सिद्धि आई ॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा
रोग ग्रस्त राजा ने,
जब आश्रय लीना ।
संकट मोचन बनकर,
दूर दुःखा कीना ॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा
जब रथकार दंपति,
तुम्हरी टेर करी ।
सुनकर दीन प्रार्थना,
विपत्ति सारी हरी ॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा
एकानन, चतुरानन,
पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज,
सकल रूप साजे ॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा
ध्यान धरे तब पद का,
सकल सिद्धि आवे ।
मन द्विविधा मिट जावे,
अटल शांति पावे ॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा
श्री विश्वकर्मा की आरती,
जो कोई नर गावे ।
भक्त गजानन स्वामी,
सुख संपति पावे ॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा
ॐ जय श्री विश्वकर्मा,
प्रभु जय श्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टि के करता,
रक्षक स्तुति धर्मा ॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा
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