हिंदू पंचांग के अनुसार ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। एक महीने में दो पक्ष होने के कारण दो एकादशी होती हैं, एक शुक्ल पक्ष मे तथा दूसरी कृष्ण पक्ष मे। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। रमा एकादशी को रम्भा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। रमा एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है साथ ही, मां लक्ष्मी का आशीर्वाद भी मिलता है।
रमा एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा से लोगों के सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। एकादशी की कथा सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। जीवन में आने वाली बाधाएं खत्म होती हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास बना रहता है। जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, दान करने से वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है।
जो व्यक्ति इस दिन लक्ष्मी नारायण का ध्यान करते हुए व्रत रखता है उसे अपार पुण्य की प्राप्ति होती है। रमा एकादशी व्रत में तुलसी की पूजा एवं भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित करने का बड़ा महात्म्य है। रमा एकादशी के पर भगवान विष्णु का माता लक्ष्मी के पूजन का विधान है। मान्यता है कि इस दिन विधि पूर्वक माता लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु का पूजन करने से सभी मनोकानाओं की पूर्ति होती है।
रमा एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान से निवृत होकर स्वच्छ और पीले रंग के वस्त्र पहनें। भगवान विष्णु को ध्यान करते हुए हाथ में अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें। रमा एकादशी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के पूजन का विधान है। एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें और चारों तरफ गंगाजल से छिड़काव करें, मान्यता है कि इस दिन विधि पूर्वक भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी का पूजन करने से सभी मनोकानाओं की पूर्ति होती है।
फिर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान की पूजा करें। इन्हें पंचामृत से स्नान करवाएं। भगवान को पीले फूल, पीले फल, चंदन, जनेऊ, गंध, अक्षत, पुष्प, तिल, धूप-दीप, नैवेद्य, पान, नारियल, पंचामृत आदि अर्पित करें। इसके साथ ही तुलसी पत्र भी अर्पित करें। फिर तुलसी पत्र के साथ भोग लगाएं। घी का दीपक जलाएं और कपूर से आरती उतारें, और प्रार्थना करे इस दिन ‘विष्णुसहस्त्रानम्’ का पाठ करने से सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती है।
इसके बाद रमा एकादशी की कथा का श्रवण या वाचन करें। विधिपूर्वक श्रद्धा से पूजा के उपरांत योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएँ और दक्षिणा दें। पूरे दिन विष्णु जी के नाम का जप एवं कीर्तन करते हुए यह व्रत पूरा करना चाहिए और सामर्थ्य के अनुसार दान पुण्य भी करें।
रमा एकादशी व्रत कथा
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! कार्तिक कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि क्या है? इसके करने से क्या फल मिलता है। सो आप विस्तारपूर्वक बताइए। भगवान श्रीकृष्ण बोले कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम रमा है। यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है। इसका माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो
प्राचीन काल में मुचुकुंद नाम का राजा राज्य करता था। वह बड़ा सत्यवादी और जगत पालक विष्णु का भक्त था। उसकी इंद्र के साथ मित्रता थी और साथ ही यम, कुबेर, वरुण और विभीषण भी उसके मित्र थे। यह राजा बड़ा धर्मात्मा, विष्णुभक्त और न्याय के साथ राज करता था। उसकी चन्द्रभागा नाम की बेटी थी, जिसका विवाह उसने राजा चन्द्रसेन के पुत्र सोभन से कर दिया। राजा मुचुकुंद एकादशी का व्रत बड़े ही नियम से करता था और राज्य के लोगों से भी कठोरता से इस नियम का पालन कराता था।
एक बार की बात है कि कार्तिक के महीने में सोभन अपनी ससुराल आया। इसी समय रमा एकादशी आ गई। इस दिन सभी व्रत रखते थे। इधर, जब दशमी आई तब राज्य में राजा ने व्रत रखने के लिए ढिंढोरा पिटवाया, उसे सुनकर सोभन अपनी पत्नी के पास गया और बोला – मैं उपवास नहीं कर सकता, यदि मैं उपवास करूंगा तो अवश्य ही मर जाऊंगा। अब इस समस्या का कोई उपाय बताओ।
इस पर चन्द्रभागा ने कहा – मेरे पिता के राज्य में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं कर सकता। यहां तक कि हाथी, घोड़ा, ऊंट, पशु आदि भी तृण, अन्न, जल आदि ग्रहण नहीं करते। यदि आप उपवास नहीं कर सकते तो किसी दूसरे स्थान पर चले जाइए, क्योंकि यदि आप यहां रहेंगे तो आपको व्रत तो करना पड़ेगा। पत्नी की बात सुनकर सोभन ने कहा – लेकिन मैं व्रत करने के डर से किसी दूसरे स्थान पर नहीं जाऊंगा, परिणाम चाहे कुछ भी क्यों न हो।
सभी के साथ सोभन ने भी एकादशी का व्रत किया, लेकिन भूख और प्यास से दूसरे दिन सूर्योदय होने से पहले ही दम तोड़ दिया। राजा ने सोभन के मृत शरीर को जल में प्रवाहित करा दिया और अपनी पुत्री को आज्ञा दी कि वह सती न हो और भगवान विष्णु की कृपा पर भरोसा रखे।
चन्द्रभागा अपने पिता की आज्ञानुसार सती नहीं हुई। वह अपने पिता के घर रहकर एकादशी के व्रत करने लगी। इधर, रमा एकादशी के प्रभाव से सोभन को मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से परिपूर्ण तथा शत्रु रहित देवपुर नाम का एक उत्तम नगर प्राप्त हुआ। उसे वहां का राजा बना दिया गया। उन्हीं दिनों तीर्थ यात्रा के लिए निकला मुचुकुंद नगर का ब्राह्मण सोमशर्मा सोभन के राज्य में आ पहुंचा। ब्राह्मण ने उसे देखा तो पास गया। इस पर राजा सोभन ने भी ब्राह्मण को आसन दिया और अपने ससुर व चन्द्रभागा के बारे में पूछने लगा। सोभन की बात सुन सोमशर्मा ने सब बात बताई। ब्राह्मण ने सोभन की भी कहानी पूछी।
इस पर सोभन ने कहा – यह सब कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी के व्रत का फल है। इसी से मुझे यह अनुपम नगर प्राप्त हुआ है, किंतु यह अस्थिर है। यह सुन ब्राह्मण बोला – मुझे इसका रहस्य बताइये तो राजा सोभन ने कहा – मैंने वह व्रत विवश होकर और श्रद्धारहित किया था। उसके प्रभाव से मुझे यह अस्थिर नगर प्राप्त हुआ, लेकिन यदि तुम इस वृत्तांत को राजा मुचुकुंद की पुत्री चन्द्रभागा से कहोगे तो वह इसको स्थिर बना सकती है।
राजा सोभन की बात सुन ब्राह्मण अपने नगर को लौट आया और उसने चन्द्रभागा से सारा वृत्तांत सुनाया। इस पर राजकन्या चन्द्रभागा बोली – हे ब्राह्मण देवता मुझे वहां लेकर चलिए। ब्राह्मण उसे मंदराचल पर्वत के पास वामदेव के आश्रम में ले गया। वामदेव ने उसकी कथा को सुनकर चन्द्रभागा का मंत्रों से अभिषेक किया। चन्द्रभागा मंत्रों और व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण करके पति के पास चली गई।
सोभन ने अपनी पत्नी चन्द्रभागा को देखकर उसे प्रसन्नतापूर्वक आसन पर अपने पास बैठा लिया। चन्द्रभागा ने कहा – जब मैं अपने पिता के घर में आठ वर्ष की थी, तब ही से मैं सविधि एकादशी का व्रत कर रही हूं। उन्हीं व्रतों के प्रभाव से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा और सभी कर्मों से परिपूर्ण होकर प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा। इसके बाद चन्द्रभागा दिव्य स्वरूप धारण करके तथा दिव्य वस्त्रालंकारो से सजकर अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहने लगी।
हे राजन! यह मैंने रमा एकादशी का माहात्म्य कहा है, जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, उनके ब्रह्महत्यादि समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता अथवा सुनता हैं, वह समस्त पापों से छूटकर विष्णुलोक को प्राप्त होता हैं।