कृष्ण भजन
अब तो लगी लगन ये,
मिट्टी में है मिल जाना।
प्रेमी के प्रेम पथ पर,
मन हो गया दीवाना॥
अब तो लगी लगन ये,
मिट्टी में है मिल जाना।
दर-दर की खाक छानी,
दृग से बहाके पानी।
जो देखता सो कहता,
है नेह की निशानी।
अब रो रहा हठी दिल,
पहले कहा न माना।
मन हो गया दीवाना,
प्रेमी के प्रेम पथ पर,
मन हो गया दीवाना॥
परवाह नहीं है तन की,
बदली है गति नयन की।
सुनता नहीं हठी दिल,
गम है खुराक मन की।
पीने को दिन में आँसू,
और रात को गम खाना।
मन हो गया दीवाना,
प्रेमी के प्रेम पथ पर,
मन हो गया दीवाना॥
जब याद है सताती,
फटती है हाय छाती।
रो-रो के भेजता है,
उस बेनिशां को पाती।
पत्तों से पूछता है,
उनका पता ठिकाना।
मन हो गया दीवाना,
प्रेमी के प्रेम पथ पर,
मन हो गया दीवाना॥
यह प्रेम पथ अगम है,
क्या भटकने का गम है।
दुनिया को हिला देंगे,
मन का यही नियम है।
रख श्याम को पुतली में,
हर निज को भूल जाना ॥
मन हो गया दीवाना,
प्रेमी के प्रेम पथ पर,
मन हो गया दीवाना॥
अब तो लगी लगन ये,
मिट्टी में है मिल जाना॥