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शिव शक्ति से ही पूर्ण हैं, शक्ति के वो सिंदूर हैं,
गौरी के गौरव के लिए, जो हो रहे अब दूर है।
शिव शक्ति से ही पूर्ण हैं, शक्ति के वो सिंदूर हैं,
गौरी के गौरव के लिए, जो हो रहे अब दूर हैं।
कोई तोड़ ना है बिछोह का, ना ही मोल मन के मोह का,
कोई तोड़ ना है बिछोह का, ना ही मोल मन के मोह का,
शिव जाने क्या है काली का, अस्तित्व आदि शक्ति का,
विचलित करे ना भावना, ना ही दे सके कोई सांत्वना ।
नियती है बंधन से परे, जो रच दीया सो वो करे,
शिव शक्ति से ही पूर्ण है, शक्ति के वो सिंदूर है,
गौरी के गौरव के लिए, जो हो रहे अब दूर हैं।
कैलाश की गृह स्वामिनी, शिव की हूँ मैं अर्धांगिनी,
निर्माण मेरे अस्तित्व का, खंडन ना हो दायित्व का,
अब ना कोई अवरोध हो, अब मेरे मन का बोध हो ।
महाकाल की महाकालिका, परमेश्वरी पथपालिका,
अब तक स्वयं से दूर है, यही शक्ति तो सम्पूर्ण है,
यही शक्ति तो सम्पूर्ण है, यही शक्ति तो सम्पूर्ण है,
यही शक्ति तो सम्पूर्ण है ।
शिव शक्ति से ही पूर्ण है, शक्ति के वो सिंदूर है,
गौरी के गौरव के लिए, जो हो रहे अब दूर है ।