हिंदू पंचांग के अनुसार ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। एक महीने में दो पक्ष होने के कारण दो एकादशी होती हैं, एक शुक्ल पक्ष मे तथा दूसरी कृष्ण पक्ष मे। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। मोक्षदा एकादशी को वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन ही कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीताका उपदेश दिया था, इसलिये मोक्षदा एकादशी को गीता जयंती भी मनाई जाती है।
मोक्षदा एकादशी व्रत पूजा विधि
मोक्षदा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करके स्वच्छ और पीले रंग के वस्त्र पहनें। भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प करें। एक लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं। भगवान विष्णु के दामोदर रूप की पूजा करते समय "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का उच्चारण करते हुए पंचामृत से भगवान का स्नान कराएं। भगवान को वस्त्र, चंदन, जनेऊ, गंध, अक्षत, पुष्प, तिल, धूप-दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, पान, नारियल आदि अर्पित करें। इसके साथ ही तुलसी पत्र भी अर्पित करें।
घी का दीपक जलाएं और कपूर से आरती उतारें, और प्रार्थना करे। इस दिन ‘विष्णुसहस्त्रानम्’ का पाठ करने से सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती है। इसके बाद मोक्षदा एकादशी की कथा का श्रवण या वाचन करें। मोक्षदा एकादशी की कथा सुनने और पढ़ने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पूरे दिन विष्णु जी के नाम का जप एवं कीर्तन करते हुए यह व्रत पूरा करना चाहिए। विधिपूर्वक श्रद्धा से पूजा के उपरांत योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएँ और दक्षिणा दें। मोक्षदा एकादशी के दिन फलाहार करें।
मोक्षदा एकादशी महत्व
मोक्षदा एकादशी को वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भक्त पूरे दिन बिना बोले "मौन" व्रत रखते हैं। मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के दामोदर रूप की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु के शंख, गदा, चक्र और पद्मधारी रूप को दामोदर की संज्ञा दी गयी है। मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और श्रीकृष्ण की पूजा करने से पापों का नाश होता है, साथ ही यह एकादशी व्यक्ति के जीवन भर के सभी पापों और अनैतिक कार्यों को क्षमा भी करती है।
मोक्षदा एकादशी के दिन किसी जरूरतमंद को भगवद गीता देना भी लाभकारी होता है, ताकि उसे भगवान कृष्ण का आशीर्वाद मिल सके। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवद गीता सुनने से व्यक्ति को उतना ही लाभ मिलता है जितना कि किसी पवित्र अश्वमेध यज्ञ से मिलता है। मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत करने से पितर दोष से मुक्ति मिलती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! मैंने मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी अर्थात उत्पन्ना एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है?इसकी विधि क्या है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए।
भगवान श्रीकृष्ण बोले मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष मे आने वाली इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। जो सब पापों को समाप्त करनेवाली है। यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सब कामनाएँ पूर्ण करने वाला है। मोक्षदा एकादशी का व्रत करके इसका पुण्यदान अपने पितरों को करने से पितर मोक्ष को प्राप्त होते हैं। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। इसका माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
पूर्वकाल की बात है, वैष्णवों से विभूषित परम रमणीय चम्पक नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भाँति पालन करता था। इस प्रकार राज्य करते हुए राजा ने एक दिन रात को स्वप्न में अपने पितरों को नरक में पड़ा हुआ देखा। उन सबको इस अवस्था में देखकर राजा के मन में बड़ा विस्मय हुआ और प्रातः काल ब्राह्मणों से उन्होंने उस स्वप्न का सारा हाल कह सुनाया ।
राजा ने कहा मैंने अपने पितरों को नरक में कष्ट उठाते देखा है। वे बारंबार रोते हुए मुझसे यों कह रहे थे कि 'तुम हमारे तनुज हो, इसलिए इस नरक समुद्र से हम लोगों का उद्धार करो। जबसे मैंने ये वचन सुने हैं तबसे मैं बहुत बेचैन हूँ। चित्त में बड़ी अशांति हो रही है। क्या करें ? कहाँ जाऊँ? मेरा हृदय रुंधा जा रहा है। हे ब्राह्मण देवताओं! वह व्रत, तप और दान, आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पूर्वज तत्काल नरक से छुटकारा पा जायें, बताने की कृपा करें। मुझ बलवान तथा साहसी पुत्र के जीते जी मेरे माता पिता घोर नरक में पड़े हुए हैं। अतः पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके।
ब्राह्मणों ने कहा हे राजन! यहाँ से निकट ही पर्वत मुनि का महान आश्रम है। वे भूत और भविष्य के भी जाता है। नृपश्रेष्ठ आप उन्हींके पास चले जाइये वे आपकी समस्या का हल जरूर करेंगे। ब्राह्मणों की बात सुनकर महाराज वैखानस शीघ्र ही पर्वत मुनि के आश्रम पर गये और वहाँ उन मुनिश्रेष्ठ को देखकर उन्होंने दण्डवत् प्रणाम करके मुनि के चरणों का स्पर्श किया। मुनि ने भी राजा से राज्य के सातों अंगों की कुशलता पूछी।
राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य के सातों अंग सकुशल है किन्तु मैंने स्वप्न में देखा है कि मेरे पितर नरक में पड़े हैं। अतः बताइये कि किस पुण्य के प्रभाव से उनका वहाँ से छुटकारा होगा ? राजा की यह बात सुनकर मुनिश्रेष्ठ पर्वत ने आँखें बंद की और फिर नेत्र बंद कर भूत और भविष्य पर विचार करने लगे।
कुछ देर गम्भीरतापूर्वक चिंतन करने के बाद उन्होंने कहा- 'राजन! मैंने अपने योगबल के द्वारा तुम्हारे पिता के सभी कुकर्मों का ज्ञान प्राप्त कर लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में अपनी पत्नियों में भेदभाव किया था। अपनी बड़ी रानी के कहने में आकर उन्होंने अपनी दूसरी पत्नी को ऋतुदान मांगने पर नहीं दिया था। उसी पाप कर्म के फल से तुम्हारा पिता नरक में गया है।'
यह जानकर राजा वैखानस ने याचना-भरे स्वर में कहा- 'हे ऋषिवर! मेरे पिता के उद्धार का आप कोई उपाय बताने की कृपा करें, किस प्रकार वे इस पाप से मुक्त होंगे?' इस पर पर्वत मुनि बोले- 'हे राजन! मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है, उसे मोक्षदा एकादशी कहते हैं। यह मोक्ष प्रदान करने वाली है। आप इस मोक्षदा एकादशी का व्रत करें और उस व्रत के पुण्य को संकल्प करके अपने पिता को अर्पित कर दें। एकादशी के पुण्य प्रभाव से अवश्य ही आपके पिता की मुक्ति होगी।'
पर्वत मुनि के वचनों को सुनकर राजा अपने राज्य को लौट आया। जब उत्तम मार्गशीर्ष मास आया, तब राजा वैखानस ने मुनि के कथनानुसार परिवार सहित मोक्षदा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया और उसका पुण्य समस्त पितरोसहित पिता को अर्पित कर दिया। पुण्य देते ही क्षणभर में आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। राजा वैखानस के पिता को पितरोसहित नरक से मुक्ति मिल गई। स्वर्ग को प्रस्थान करते हुए राजा के पिता ने कहा 'हे पुत्र! तुम्हारा कल्याण हो' इतना कहकर राजा के पिता ने स्वर्ग को प्रस्थान किया।
राजन् जो इस प्रकार मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की कल्याणमयी "मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं, और मरने के बाद वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। यह मोक्ष देनेवाली मोक्षदा एकादशी मनुष्यों के लिए चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाली है। इस माहात्मय के पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है ।