पौष पुत्रदा एकादशी के दिन पूजा के समय संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। व्यक्ति को जीवन के सभी दुखों और संकटों से छुटकारा मिलता है साथ ही इस व्रत को करने से
स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
पुत्रदा एकादशी व्रत पूजा विधि
पुत्रदा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करके स्वच्छ और पीले रंग के वस्त्र पहनें। भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प करें। एक लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं। भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करनी चाहिए, पूजा करते समय "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का उच्चारण करते हुए पंचामृत से भगवान का स्नान कराएं।
भगवान को वस्त्र, चंदन, जनेऊ, गंध, अक्षत, पुष्प, तिल, धूप-दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, पान, नारियल आदि अर्पित करें। इसके साथ ही तुलसी पत्र भी अर्पित करें। घी का दीपक जलाएं और कपूर से आरती उतारें, और प्रार्थना करे। पूजा के बाद संतान गोपाल मंत्र का जाप करना चाहिए। इस दिन ‘विष्णुसहस्त्रानम्’ का पाठ करने से सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती है।
इसके बाद पुत्रदा एकादशी की कथा का श्रवण या वाचन करें। पुत्रदा एकादशी की कथा सुनने और पढ़ने से सभी कार्यो में सफलता प्राप्त होती है। पूरे दिन विष्णु जी के नाम का जप एवं रात में जागरण करके भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करते हुए यह व्रत पूरा करना चाहिए। पुत्रदा एकादशी को विशेष रूप से दीप दान करने का विधान है। विधिपूर्वक श्रद्धा से पूजा के उपरांत योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएँ और दक्षिणा दें। पुत्रदा एकादशी के दिन फलाहार करें।
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
पुत्रदा एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। पुत्रदा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा और व्रत कर के रात्रि जागरण करने का बहुत महत्व है। इस व्रत को करने से जिस फल की प्राप्ति होती है, वह हजारों सालों तक तपस्या करने से भी नहीं मिलता। पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
जो लोग एकादशी का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के बाद स्वर्ग प्राप्त करते हैं। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन गाय को चारा खिलाना भी अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। यह व्रत पारिवारिक सुख-शांति और संतान के उज्ज्वल भविष्य के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
महाराज युधिष्ठिर ने कहा हे स्वामिन् ! आपने सफला एकादशी का माहात्म्य बताकर बड़ी कृपा की। अब कृपा करके यह बतलाइए कि पौष शुक्ल एकादशी का क्या नाम है उसकी विधि क्या है और उसमें कौन-से देवता का पूजन किया जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहाः राजन्। पौष मास के शुक्लपक्ष की जो एकादशी है, उसका नाम 'पुत्रदा' है। इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। इसके पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान और मोक्ष को प्राप्त होता है। हे राजन ! अब आप पुत्रदा एकादशी की कथा ध्यान से सुने -
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उनकी रानी का नाम चम्पा था। राजा को बहुत समय तक कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ। इसलिए दोनों पति पत्नी सदा चिन्ता और शोक में डूबे रहते थे। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा को भाई, बाँधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था।
वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूँगा। जिस घर में पुत्र न हो उस घर में सदैव अँधेरा ही रहता है। इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था।
एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि वन में मृग, व्याध, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है। मार्ग में कहीं सियार की बोली सुनायी पड़ती थी तो कहीं उल्लुओं की।
इस प्रकार घूम घूमकर राजा वन की शोभा देख रहे थे, इतने में दोपहर हो गयी। राजा को भूख और प्यास सताने लगी। वे जल की खोज में इधर उधर भटकने लगे । किसी पुण्य के प्रभाव से उन्हें एक उत्तम सरोवर दिखायी दिया, उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। राजा ने उन आश्रमों की ओर देखा। उसी समय शुभ की सूचना देनेवाले शकुन होने लगे। राजा का दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फल की सूचना दे रहा था।
सरोवर के तट पर बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे। उन्हें देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ। राजा घोड़े से उतरकर मुनियों के सामने खड़े हो गये और पृथक् पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे। राजा ने हाथ जोड़कर बारंबार दण्डवत् प्रणाम किया, तब मुनि बोले राजन्। हम लोग तुम पर प्रसन्न है।" तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो। राजा ने पूछा- महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहाँ आए हैं। कृपा करके बताइए।
मुनि बोले राजन् ! हम लोग विश्वेदेव हैं। यहाँ स्नान के लिए आये हैं। माघ मास निकट आया है। आज से पाँचवें दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जायेगा। आज ही पुत्रदा नाम की एकादशी है, जो व्रत करनेवाले मनुष्यों को पुत्र देती है। यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। मुनि बोले हे राजना आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान केशव की कृपा से अवश्यू ही आपके घर में पुत्र होगा।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं। युधिष्ठिर ! इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उक्त उत्तम व्रत का पालन किया। महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी' का अनुष्ठान किया । फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारंबार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये । तदनन्तर रानी ने गर्भधारण किया। प्रसवकाल के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ। जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया।
श्रीकृष्ण बोले- हे राजन पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर 'पुत्रदा एकादशी का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है।