भजन
मैली चादर ओढ़ के कैसे,
द्वार तुम्हारे आऊँ,
मन मैला और तन को धोए,
फूल को चाहे, कांटे बोये, कांटे बोये,
मन मैला और तन को धोए,
फूल को चाहे, कांटे बोये, कांटे बोये,
मन मैला और तन को धोए...
करे दिखावा भगति का क्यों,
उजली ओढ़े चादरिया,
भीतर से मन साफ किया ना,
बाहर मांजे गागरिया
परमेश्वर नित द्वार पे आया,
परमेश्वर नित द्वार पे आया,
तू भोला रहा सोए,
मन मैला और तन को धोए,
मन मैला और तन को धोए...
कभी ना मन-मंदिर में तूने,
प्रेम की ज्योत जलाई,
सुख पाने तू दर-दर भटके,
जनम हुआ दुखदायी,
अब भी नाम सुमिर ले हरी का,
अब भी नाम सुमिर ले हरी का,
जनम वृथा क्यों खोए,
मन मैला और तन को धोए,
मन मैला और तन को धोए...
साँसों का अनमोल खजाना,
दिन-दिन लूटता जाए,
मोती लेने आया तट पे,
सीप से मन बहलाए,
साँचा सुख तो वो ही पाए,
साँचा सुख तो वो ही पाए,
शरण प्रभु की होए,
मन मैला और तन को धोए,
फूल को चाहे, कांटे बोये, कांटे बोये,
मन मैला और तन को धोए...